कविता

महिला*

परिवार की धुरी होती है,
घर आँगन की शोभा होती है,
सौभाग्य की प्रतीक होती है,
मधुर मन की आवाज होती है,
अन्नपूर्णा का स्वरूप होती है,
जीवन का सार होती महिलाएं।

महिला के अनेक रुप होते है,
कभी बेटी बन बाबुल की गोद में रहती,
कभी बहिन, पत्नी, माँ का रुप होती,
कभी अनुसुइया का रुप होती है,
चुटकी भर सिंदूर के लिये
अपना जीवन अर्पित कर देती महिला।

दुख की बदली में सूर्य बन जाती,
ममता, माया दुलार का रुप होती है,
कभी लक्ष्मी तो कभी सरस्वती,
बन कर परिवार चलाती है,
अबला कहने वालों को कभी,
आसमान के तारे भी दिखाती महिला।

त्याग प्रतिमूर्ति होती है महिला,
धरती सी सहनशील होती है,
एक शरीर में इतनी सारी आत्माएं,
कोमल हृदय की होती है महिलाएं,
जगदम्बा का रुप होती है महिलाएं
ईश्वर का वरदान होती हो महिला।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171