इधर व्यापार में घाटे के साथ व्यापारी को अपनी बेटियों के विवाह की चिंता थी। जब वह पेटी लेकर जान छोड़ने के लिए गुर्गे से गिड़गिड़ा रहा था, तो एक गुर्गे की निगाह दरवाजे की ओट में खड़ी उसकी बेटियों पर पड़ी। डर से सहमे उनके भयाक्रांत चेहरे को देख उसे अपनी बेटियों का ध्यान आ गया। इधर उसका दूसरा साथी खोखा न देने पर व्यापारी को मौत की धमकी देता सुनाई पड़ा। स्थितियों का भान होते ही बेटियों के चेहरे में खोए गुर्गे की आंखों में आँसू छलकने को आ गए थे। उसकी ऐसी बदली हुई भाव-भंगिमा को देख जब उसके दूसरे साथी ने कठोर आवाज में कहा, ये क्या हो रहा है, तो वह गुर्गा सकपका गया और अपने डर से डर गया। वह दूसरा साथी कुछ समझ पाता इसके पहले ही उसकी कनपटी पर उसने गोली चला दी।
बड़े माफिया का अपने गुर्गों को निर्देश होता है कि यदि कोई गुर्गा टारगेट के प्रति नरमदिल दिखाए तो तत्काल दूसरा साथी उसे शूट कर दे। दरअसल व्यापारी की बेटियों को देखकर गुर्गे के हृदय में संवेदनशीलता जागी और वह किसी भी दशा में व्यापारी की हत्या नहीं होने देना चाहता था। ऐसी दशा में उसका दूसरा साथी उसे ही शूट कर देता, इसलिए बिना अवसर गंवाए उसने अपने दूसरे साथी को गोली मार दिया और पेशे से मुंह मोड़ पेशेवर बनने से बच गया। खैर यह तो हुई कहानी की बात।
अमृता प्रीतम ‘रसीदी टिकट’ में एक जगह लिखती हैं कि “मुझे एक प्रकाशक की ओर से एक लंबा काव्य लिखने के लिए कहा गया था, पर मैंने मना कर दिया था। लिखती, तो वह काव्य मेरे लहू के उबाल में से उठा हुआ न होता।” खैर, मैं यह नहीं कहता कि प्रकाशक माफिया है और लेखक उसका गुर्गा। लेकिन यहां लेखिका जैसे पेशेवर होने से बचना चहती है। और चाहें भी क्यों न, क्योंकि संवेदनाओं में पेशेवराना अंदाज नहीं होता। वैसे भी पैसा और प्रसिद्धि की आकांक्षा लहू के उबाल को ठंडा कर देता है।

परिचय - विनय कुमार तिवारी
जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.
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