भाषा-साहित्य

मातृ भाषाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है

सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करने के लिये नवम्बर 1999में यूनेस्को ने 21फरवरी को अंन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रुप में मनाना स्वीकार किया है।
संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था ने विश्व की आधी से अधिक भाषाओं के भविष्य को लेकर चिन्ता प्रकट की थी 2021के लिये मातृभाषा का विषय है’समावेशी शिक्षा और समाज के लिये बहु भाषिता को प्रोत्साहन’।

हर भाषा मूल्यों परम्पराओं रीति नीति आचार व्यवहार की सांस्कृतिक निधि की वाहक होती है, यदि किसी की सांस्कृतिक और संस्करों को जानना है तो उसके लिये उसकी भाषा को जानना अनिवार्य है।
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
पर हम उन सब बातो पर चर्चा करते है।
दुनिया की सबसे प्रचलित भाषाओं में आज अंग्रेजी को ही सबसे अधिक भाषा परअधिकार प्राप्त हैं ।
लेकिन भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहा कि,
निज भाषा उन्नत अहे सब उन्नत कै मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय के शूल।
आज विश्व में 3000 हजार से अधिक भाषाएं बोली जाती है ।
लेकिन देखा जाता है दुनिया के हालात पर गौर किया जाए तो जहां दुनिया में सबसे अधिक सम्पर्क वाली भाषाओं में अंग्रेजी को मान्यता प्राप्त है ।तो बोली जाने वाली भाषाओं में प्रथम स्थान पर चायना, द्वितीय स्थान पर अंग्रेजी और तृतीय स्थान पर हिन्दी को मान्यता प्राप्त है ।
दरअसल यह अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों को समर्पित है जो बंगला को मान्यता देने के लिए मार दिए गए । दुनिया भर में बोली जाने वाली 25 फ़ीसदी भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें 1000 से कम लोग बोलना जानते हैं । 61की जनगणना के अनुसार 16 से भाषाएं 52 भाषाएं बोली जाती थीं ।
हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1365 भाषाएं हैं । जिनका क्षेत्र अलग-अलग आधार पर है । 234 मात्र भाषाएं 10,000 से ज्यादा लोग बोलते हैं ।42, 2 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा हिंदी है यानी कि दुनिया भर में करीब 4 ,46% लोग हिंदी बोलते हैं । 63, 8 करोड़ लोगों की मात्र भाषाएं अन्य है । गैर सरकारी संगठन भाषा श्रेष्ठ की संस्थापक और लेखक गणेश देवी ने गहन शोध के बाद रिपोर्ट जारी की जिसमें उन्होंने कहा कि करीब 230 भाषाओं का नामोनिशान मिट गया है ।
भारत में एक कहावत प्रचलित है कोस कोस पर बदले पानी चार कोस पर बदले वाणी ।
यानि प्रत्येक एक कोस पर पानी का सीर बदल जाता है । और चार कोस पर भाषा में परिवर्तन हो जाता है । आज हम इन भाषाओं को खो रहे हैं । या दुनिया भर से की 2500भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है ।
कहा गया है कि
जदपि अंग्रेजी पढ़के सब गुन होत प्रवीण,
पै निज भाषा ज्ञान के रहत हीन के हीन ।।
हां इसमें कोई दो राय नहीं है । यदि हमें जीवन में उन्नति करनी है तो अपनी मातृभाषा को उतना ही सम्मान देना होगा । जितना हम अपने जीवन मूल्यों को देते हैं ।
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा को प्रोत्साहित करने के लिए वैश्विक स्तर पर सन 2000 ईशवी में अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया गया ।
2001 में द्वितीय वार्षिकोत्सव मनाया गया ।
2002 ई० में भाषा विविधता ख़तरे में दुनिया की तीन हजार भाषाओं पर मंडराते खतरे को ध्यान में रखते हुए नारा दिया गया कि
भाषाओं की आकाश गंगा में हर शब्द एक सितारा है ।
2003 में चौथा वार्षिकोत्सव मनाया गया ।
2004 में बच्चों के जानने के लिए शिक्षा ।
2005 में ब्रेल तथा अन्य भाषाओं पर ध्यानाकर्षण,
2006 में भाषाएं और साइबर स्पेस ।
2007 में बहु भाषी शिक्षा की और ध्यान केंद्रित किया गया ।
2008मे अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष और अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर शुरू किया गया ।
2009 में दसवां वार्षिकोत्सव मनाया गया ।
2010 में मैत्री संस्कृति के लिए अंतराष्ट्रीय मातृभाषा पर्व ।
2011 में सूचना और प्रौद्योगिकी
2012 में मातृभाषा शिक्षा और समावेशी शिक्षा की और ध्यान केंद्रित किया गया ।
2013 में मातृभाषा में शिक्षा के लिए पुस्तकें ।
2014 वैश्विक नागरिकता के लिए स्थानीय भाषाओं एवं विज्ञान पर बल ।
2015 में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा,शिक्षण की भाषा,तथा सीखने के परिणाम पर जोर दिया गया ।
2017 बहु भाषी शिक्षा के माध्यम से टिकाऊ भविष्य की और ।
2018 में हमारी भाषा और हमारी भाषा ही हमारी संपत्ति ।
मातृभाषा को प्रोत्साहित करने के लिए लिंगु अपाक्स पुरस्कार अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा के अवसर पर प्रदान किया जाता है ।
यूनेस्को प्रत्येक अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के लिए 21 फरवरी आसपास पेरिस में अपने मुख्यालय में सभी सम्बन्धित घटनाओं का व्यौरे रखती है।
आज भले ही राजकीय काम काज की भाषा अंग्रेजी बनती चली जा रही है । लेकिन सबसे दुखद तथ्य यह भी है कि हम जानबूझकर अपनी मातृभाषा हिंदी के साथ जो उपेक्षित व्यवहार करते चले जा रहे हैं । उससे हमारी परंपरा, संस्कृति, और हमारी जीवन शैली में लगातार परिवर्तन होता चला जा रहा है । यह परिणाम आने वाले समय में हमारी भाषाई संस्कृति को लगभग समाप्त कर सकते हैं । इसके लिए हमें अभी से तैयार रहना होगा । वरना कल बहुत देर हो जायेगी ।
जीवन का हर सपना जैसे कुछ बदलता सा लगता है ।
अपनो के होते भी जैसे कुछ अनजाना सा लगता है ।।
है माटी का मोल तभी जब हम उसमें रच बस जाये़ ।
निज भाषा उन्नति का मूल हम सब इसको आगे बढायें ।
हमारी प्रचीन समय से भाषायी और सांस्कृतिक विविधता का संगम रही है सदियों से हमारे देश में असंख्य भाषाओं और बोलियां रही है।गढ़वाली और कुंमाऊनी भी भले ही बोली है परन्तु यह भी भाषा ही है इसे लिखा जा सकता है।
मातृभाषा सिर्फ संवाद का स्वाभाविक माध्यम नहीं है बल्कि समुदाय की पहचान भी होती है।
इसी लिये नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई पर बल दिया गया है।
भाषा किसी समुदाय के उसके सांस्कृति की प्रतिबिंबित करती है,
इस पुनीत पर्व पर हम भाषाई विविधता को मजबूती दे तथा अपनी भाषा को नव जीवन देने का संकल्प ले।
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— कालिका प्रसाद सेमवाल

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171