हास्य व्यंग्य

बेचारा आम नागरिक-रामलाल

आवश्यकता, आविष्कार की जननी है, और विलासिता उसकी रखैल। विज्ञान का इतिहास गवाह है साहब कि सारे आविष्कार अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए चाचाओं ने किये लेकिन भतीजों ने उन्हें मनोरंजन के बाज़ार में नचवा दिया। टेलिविज़न का स्क्रीन सनी लियोनी की धार्मिक फिल्मों के काम के लिए किया जा रहा है। आजकल मैट्रिक पास होते ही बच्चे, ‘बूढ़े’ हो रहे हैं। बाप ने लौंडे को मोटरसाइकिल कोचिंग क्लास की दूरी तय करने के लिए दी लेकिन साहबजादे मेहबूबा का हाथ कमर में फँसाकर पेट्रोल का धूआँ उड़ा रहे हैं। मैट्रिक पास होते ही बिटिया रानी को बापू ने दो पहिया पर क्या बैठाया, मानो उसे पंख लग गये। वह अब मेकअप करवाने भी उड़कर जाती है। पड़ोसी की कार हमारी आँखों में रोशनी छीनती थी। हमने कर्जा लेकर नयी कार खरीद ली। स्वाभिमान तुष्ट हो गया लेकिन पेट्रोल भराने के चक्कर में ज़ेब रूष्ट हो गयी। पैरों की रक्षा करने के लिए पहने जाने वाले खड़ाऊ, वाकिंग से जॉगिंग और रनिंग से लेकर प्लेयिंग के लिए अलग-अलग हो गये। एक जोड़ी पैर के दिए कई जोड़ी चरणदास! कल्लू हलवाई की चार रुपये कचौरी की चार सौ रुपये के पिज़्ज़ा के सामने भला क्या औकात? और साहब नवाबी का आलम तो देखिये बीस रुपये की बोतल का पानी जबकि सौ रुपये का ‘ठंडा मतलब कोकाकोला। सिर उठाकर पियो शान से।’ जब मैं जवानी में नया-नया कदम रख रहा था तब से जवानी कमज़ोर होने का दौर शुरू हो गया था। बीस साल का लड़का यदि गुटखा-तंबाकू नहीं खाता था तो उसकी मर्दानगी संदिग्ध मानी जाती थी। शराब न पीनेवाला तो सभ्य समाज में बैठने लायक भी नहीं माना जाता था। अब तो सोलहवें साल में ही यह पराक्रम हो जाते हैं।
हमने अपना स्तर उठाने के चक्कर में महँगाई का स्तर भी ऊँचा उठा दिया। जैसे-जैसे यातायात के साधन बढ़े। महँगाई भी बढ़ी। जब पैदल या बैलगाड़ी पर चलते थे, सौदा अपने गाँव में हो जाता था। तू मेरा एक किलो चावल ले कर मुझे एक किलो घी दे जा। अब तो यातायात हवाई जहाज़ से होता है। जहाज, बस, ट्रक, रेलगाड़ियों से होता है। बैल-घोड़े घास खाते थे। ये सब तेल पीते हैं। तेल यानि पेट्रोल। अब देखो तेल और तेल की धार! अब तेल रुला रहा है।
सरकार की साँस फूल रही है। विरोधियों की बांछें खिल रही है-ऊँट पहाड़ के नीचे आ रहा है। आ गये बेटा अच्छे दिन! बिल्लियाँ, टकटकी बाँधे है। छीके को निहार रही हैं। न जाने किसी के भाग से टूट ही जाय। सबके पास अपने-अपने तर्क हैं और अपने-अपने कारण।
महँगाई और पेट्रोल दोनों रेलगाड़ी की पटरियाँ हैं। साथ-साथ चलती हैं। ये बात सरकार को समझ नही आती। विपक्ष और रामलाल को समझ आती है। विपक्ष के पास रोटी है इसलिए वह इसकी ऊर्जा का उपयोग उसे सेंकने के लिए करता है।
रामलाल परेशान है। क्या करे? उसके पास रोटी नहीं है सिर्फ सौ रुपये है। यदि वह चीन-पाकिस्तान की सीमा को न देखकर पेट्रोल के मीटर को देखता है तो ‘गद्दार’ कहलाता है। सौ रुपये वाला पेट्रोल खरीद कर कराह दबाते हुए मोटरसाइकिल को किक मारकर रोटी कमाने जाता है तो ‘भक्त’ करार दिया जाता है। बेचारा आम नागरिक-रामलाल!!

— शरद सुनेरी