क्षणिका

जिंदगी की शाम

बंदिशों के पिंजरो में कैद है-
मेरी जज्बातों की आजादी!
पंख फड़फड़ाते है…..
उड़ नहीं सकते ये परिंद….!
रफ्ता रफ्ता कम होती जाती है
उम्र की लंबाई…..!
खुदा जाने क्या हो….?
जब इस जिंदगी की शाम आई!

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P