सामाजिक

सन्तोषम् परम् सुखम्

वास्तव में खुशी क्या है? प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु ने कहा था कि खुशी जीवन का अर्थ और उद्देश्य दोनों है। अरस्तु ने सच ही कहा था। खुशी ही तो जीवन का उद्देश्य है और इसके बिना जीवन का वास्तव में कोई अर्थ नहीं है। इसीलिए तो हर व्यक्ति खुशी की तलाश में रहता है। पर ज्यादातर लोग यह नहीं जानते कि खुशी क्या है, इसलिए वे खुशी के बजाय सुविधाएं जुटाते रहते हैं। और जब सारी सुविधाएं जुटा लेते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि सब कुछ तो मिल गया पर खुशी कहां है। ऐसे में मनुष्य लाइफ मैनेजमेंट गुरुओं के चक्कर लगाता है। सन्त-महात्माओं एवं गुरु भी उसे वही चीजें बताते हैं, जो उसे पहले से पता होती हैं। कि मन में सकारात्मक विचार रखो। जो है उसी में संतुष्ट होना सीखो। भौतिक पूंजी के साथ-साथ भावनात्मक पूंजी भी इकट्ठा करो। और यह सब करते हुए भी कर्म को मत भूलो, वरना आर्थिक दुश्वारियां भी आपको कभी खुश नहीं होने देंगी।
बहरहाल खुशी को समझने के सबके अपने-अपने फंडे हैं। कोई अपनी छोटी सी कमाई में ही खुश रह लेता है और कोई भारी बैंक बैलेंस के बावजूद भी खुश रहना नहीं सीख पाता। ऐसा इसलिए है क्योंकि पैसे से भौतिक सुख और वित्तीय सुरक्षा तो हासिल की जा सकती है, लेकिन खुशी नहीं खरीदी जा सकती है। वास्तव में, पैसे और खुशी के बीच कोई सीधा रिश्ता ही नहीं है। खुशी या निर्मल आनंद जैसा अनुभव अनेक अन्य चीजों पर निर्भर है जैसे सामाजिक सम्मान, स्वतंत्रता का अनुभव, सच्चा प्रेम, सच्ची मित्रताएं, नौकरी से सन्तुष्टि, रोजगार से सुरक्षा, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, परिजनों के साथ भावनात्मक संबंध, बच्चों के भविष्य की सुरक्षा इत्यादि।
        सार यह है कि आप जितने अधिक समृद्ध होंगे आपके जीवन में उतनी ही संतुष्टि होगी, लेकिन संतुष्टि और खुशी एक ही चीज नहीं हैं। आपको अपनी खुशी तलाशने के लिए अपना एक अलग फार्मूला बनाना होगा। कबीर जी के यह पद याद रखिये :-

सांई इतना दीजिए, जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय।

गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धन खान।
जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान।

और अंत में महात्मा बुद्ध की एक बात याद रखिए-

‘जिस तरह एक मोमबत्ती से हजारों मोमबत्तियां जलाई जा सकती हैं और उस मोमबत्ती की उम्र कम नहीं होती, उसी तरह खुशी भी बांटने से कम नहीं होती।’इसलिए एक छोटी सी खुशी तलाशो और उसे बांटते रहो। ख़ुशी को तो जितना बांटोगे, उतनी ही खुशी बढ़ती जाएगी।

  वास्तव में,खुशी व संतोष मन की अवस्थाएँ हैं।यदि मन में संतोष होगा,तो कोई भी अभाव कभी खलेगा तो है ही नहीं,बल्कि सदैव उल्लास का अनुभव भी होगा,अन्यथा असंतोष की स्थिति में मन अतृप्त होकर,सारी संपन्नता के बाद भी भटकता रहेगा।इसीलिए,तो कहा गया है कि,” संतोषम् परम् सुखम्।”
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com