कविता

काश तुम मेरे होते

काश तुम मेरे होते,
जो देखे थे सपन सलोने,
थे पूरे होने की दहलीज पर,
ना जाने जिंदगी ने ली,
ये कैसे करवट हो गए रास्ते जुदा,
सुबह बिस्तर पर जो होता सिलवट,
लगता शायद  तूने ली हो करवट,
अपने बालों की छीटों से,
तुम्हें प्यार से उठाते,
काश जो तुम मेरे होते।
हर सुहानी शाम में दोनों बैठ कर,
अकेले गीत पुराने गुनगुनाते,
सुन उसकी धुन में हम खो जाते,
काश जो तुम मेरे होते।
याद आती वह लंबी यात्रा,
डूबते सूरज की थी लालिमा,
तेरा मुझको यूं तकना,
मेरी पलकों का फिर झुकना,
वो क्षण अब भी है गुदगुदाते,
काश कि तुम मेरे होते।
आज देखा जब उसी जगह पर,
मेरे अलावा किसी और को बैठे,
एक अजीब सी टीस थी ऊभरी,
पछतावा थे नैनों में तेरे,
भाव उमङा वही घनेरे,
काश तुम मेरे होते।
अब तो बस यादों के तेरे,
याद मुझे है घेरे होते,
कांधे पर तेरे मेरे सर होते,
आज दहलीज पर खड़े यह सोचुँ,
घर के नेम प्लेट में तुम होते,
काश की तुम मेरे होते,
फिर ना दुख के डेरे होते,
काश की तुम मेरे होते।
— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com