कविता

सौगात

खास होते हैं कुछ बात,
जुड़ा रहता उससे जज्बात,
बिकता नहीं हजारों में,
मिलता सिर्फ दुआओं में,
शामिल रहता है हर पल
खट्टी मीठी यादों में,
बीते थे शादी के कुछ वर्ष,
हंसी-खुशी सब थे समर्थ,
गई दृष्टि फिर एक ही ओर
कौन संभाले घर की बागडोर,
खुसफुस होने लगी घरों में,
सवाल रहता सबके नैनों में,
क्या कहूं कुछ कहा न जाए,
दर्द अब यह सहा न जाए,
ईश्वर ने सुन ली सुनी मन की बात,
मिला फिर एक स्वर्णिम सौगात,
इस एक सौगात से घर में
छा गया हर्षोल्लास,
दादा दादी पापा मां
इस शब्दों की होने लगी बरसात,
यह था अब तक के जीवन का
एहसासों भरा स्वर्णिम सौगात।
— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com