गीतिका/ग़ज़ल

गॉंव

शहरों सा झुलस रहा है अब गॉंव
पीपल रहा न चौक में, मिट गई ठंडी छांव
जल-जंगल सभी हो गये यहॉं लापता
कंक्रीट के जंगलों ने पसारा चहुंओर पांव
शहरों सा झुलस रहा है अब गॉंव
ताल-तलैया, नदी-पोखर, कुए सब सूखे
मानव बनकर दानव खेल रहा स्वार्थ के दॉंव
शहरों सा झुलस रहा है अब गॉंव
कोख हुई धरती की बंजर देखो आज
हर जीव भटक रहा, मिले न किसी को ठांव
शहरों सा झुलस रहा है अब गांव
पेड़-पौधों को काट रौंद दी सारी प्रकृति
डूब जाएगी आने वाली नव पीढ़ी की नाव
शहरों सा झुलस रहा है अब गांव
साथी ! अगर धरती बचानी है अपनी तो,
प्रकृति प्रेम की और बढ़ाओ अब पांव
शहरों सा झुलस रहा है अब गांव
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111