मुक्तक/दोहा

ताजमहल पर दोहे

अमर मुहब्बत की कथा,है भावों का नूर।
शाहजहाँ ने रच दिया,ताजमहल भरपूर।।

बेग़म पर सब वारकर,दिया सुखद उपहार।
शाहजहाँ ने कर दिया,रोशन यह संसार।।

थी बेग़म दिल के निकट,शाहजहाँ का ताज।
इतिहासों में है अमर,कहलाती मुमताज।।

दुनिया में जानी गई,संगमरमरी आभ।
ताजमहल तो बन गया,बेहद ही अमिताभ।।

शहर आगरा भा रहा,करे पर्यटन ख़ूब।
हर इक मन प्रमुदित रहे,रहे हर्ष में डूब।।

मुग़ल शाह का शिल्प यह,है मंगलमय गान।
भारत का जो कर रहा,दुनिया में यशगान।।

मध्यकाल का स्वर्णयुग,था चोखा इतिहास।
कहने को वह मकबरा,पर नेहिल-सी आस।।

रखे मुहब्बत ताज़गी,बतलाता यह बात।
ताजमहल है बंदगी,प्रियवर को सौगात।।

सदा मुहब्बत क़ीमती,होती है अनमोल।
ताजमहल नित बोलता,प्यार भरे मधु बोल।।

करो प्यार,छोड़ो निशाँ,प्यार बने अनमोल।
ताजमहल-क्या बात है,सब इसकी जय बोल।।

युगोंयुग तक है अमर, ताजमहल-आकर्ष।
जिसमें है रौनक भरी,और मुहब्बत-हर्ष।।

अभिनंदित है ताज नित,जो दुनिया में एक।
ताजमहल हर पल लगे,कितना व्यापक-नेक।।

भारत का है गर्व जो,है भारत का कोष।
ताजमहल की बोलते,हम सारे जयघोष ।।

— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com