कविता

मधुर मिलन की आस

मधुर मिलन की आस लिए,
 मधुमास की राह निहार रही|
 कभी कलियों में कभी गलियों में,
 ऋतुराज तुझे मैं पुकार रही |
है लालायित मेरी आंखें,
 तेरा मनमोहक छवि पाने को|
 भेजा है संदेशा कोयल  से,
 ऋतुराज जी तुझे  बुलाने को|
 आमों में बौर बन कर आओ !
खेतों में सरसों की कलियां|
 धनिया की खुशबू से भर दो!
 ऋतुराज सुहानी सी गलियां|
 बसंती बयार की ले फुहार,
 जीवन को अब  महाका जाओ!
 यह “रीत” पुकारे  हे! बसंत,
 तरसाओ ना अब आ जाओ!
— रीता तिवारी  “रीत”

रीता तिवारी "रीत"

शिक्षा : एमए समाजशास्त्र, बी एड ,सीटीईटी उत्तीर्ण संप्रति: अध्यापिका, स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री मऊ, उत्तर प्रदेश