हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – भक्त -पुराण

अभी तक हमने मात्र भगवान, देवी और देवताओं के भक्त ही सुने थे।लेकिन आज भक्त भी विभक्त हो गए हैं।अब तो चोर ,डकैत,गिरहकट, नेता ,दल आदि सभी के भक्त होने लगे हैं, जो अपने उन तथाकथित इष्टों में पूर्ण समर्पण रखते हैं।भक्त का मतलब ही है कि जिसकी भक्ति करो , उसके प्रति अंधा विश्वास होना चाहिए। शक की कोई बाल भर भी गुंजायश न रह जाए।हमारा ‘इष्ट’ भले ही गहरे गड्ढे में ले जाए, अथवा धकेल दे,उसकी इच्छा को ही आदेश मानकर चलना भक्त का परम दायित्व है।गांधारी की तरह आँखों पर पट्टी बाँध लेना ,एक अच्छे और सच्चे भक्त की पहचान है। भक्ति हो तो ऐसी हो ,अन्यथा किसी की भक्ति करना भक्ति के नाम पर कलंक लगाना है।

भक्ति का आसक्ति से विशेष घनिष्ठ संबंध है। बल्कि यों कहना ही अधिक उचित होगा कि भक्ति और आसक्ति का चोली दामन का साथ है।भक्त कभी अपने इष्ट के दोष देखना तो क्या ,सुनना भी पसंद नहीं करता।उसे सदैव प्रशंसा ही देखनी ,सुननी और करनी है। अर्थात कानों से प्रशंसा सुने, आँखों से प्रशंसा देखे और मुँह से भी प्रशंसा ही करे। यदि और भी अंग हो ऐसा मानव -देह में तो उससे भी प्रशंसा की धारा बहे। हमारे तथाकथित इष्ट भले ही दुराचारी हों, कदाचारी हों, व्यभिचारी हों,अनाचारी हों, बलात्कारी हों, कारागारी हों, परन्तु एक शब्द भी यदि उनके विरुद्ध कानों में पड़ गया ,तो मानो पिघला हुआ सीसा ही उनके रंध्रों में अड़ गया।ऐसे ही भक्तों को सच्चा भक्त कहलाने का अधिकार होता है।अपने इष्ट को दूध से धुला सिद्ध करने के लिए चाहे जितना झूठ बोलना पड़े- अवश्य बोलेंगे । झूठे -साँचे वीडियो बनाने पड़ें- बनाएंगे। झूठे साक्षी सजाने पड़ें ,सजायेंगे। झूठे आँकड़े जुटाने पड़ें- जुटाएंगे। यही ‘सद्भक्त’ की परिभाषा है। आज ऐसे भक्तों की भरमार है, संख्या बेशुमार है ,और भी भक्त बढ़ाए जाने का तरीका बरकरार है।चाहे किसी के विरुद्ध झूठी अफ़वाह फैलानी पड़े -फैलायेंगे।विपक्ष को कमजोर सिद्ध करने के हर टाँके को इधर से उधर भिड़ाने हों , भिड़ाएंगे।उसे मूर्ख ,बेदिमाग,बदचलन, पागल और बे सिर पैर का ठहराएँगे।इससे किसी का ध्यान अपने इष्ट की ओर नहीं जाएगा। और वह अपने भक्तों की विशेषज्ञता पर रीझकर उसे औऱ भी ऊपर बिठायेगा।

भक्त होना हर किसी के वश की बात नहीं होती। जिसमें होती है ,बस होती है।क्योंकि हर व्यक्ति अपनी आँखों पर काला रूमाल बाँधकर नहीं चल सकता। कहना यह चाहिए कि भक्त होना एक कला है। जिसने भी कभी किसी को छला है, वह तो भक्ति के साँचे में पहले से ही ढला है।अन्य सभी लोगों का भक्तों से दूर रहने में ही भला है। क्योंकि भक्त तो जन – जन की लुटिया डुबाने चला है। भक्त गण को बुरा न लगे ,इसलिए इतना स्पष्ट कर देना भी उचित है कि ‘चमचे’ पर मक्खन अथवा क्रीम चुपड़कर जो आइटम बनता है ,उसी का अत्याधुनिक नाम ‘भक्त’ है। यही आज की भक्त- पीढ़ी का सत्य है।

भक्त और भक्ति की बात चल रही है तो तनिक नज़र पत्नी – भक्त(बीबी का गुलाम नहीं)-की ओर डालना भी लाज़मी है।पत्नी भले पति भक्त (पतिव्रता) कहलाए , पर यदि इसके विपरीत हो जाए ,तो जैसे दिन में तारे ही दिख जाएँ। इष्ट और भक्त का संबंध मेरी अपनी दृष्टि में उभयपक्षीय है, अन्योन्याश्रित है।यदि भक्त भगवान से प्रेम करता है ,तो भगवान को भी भक्त का ध्यान रखना ही होगा। पति -पत्नी की पारस्परिक भक्ति का कुछ ऐसा ही नाता है।भले ही गुर्गे अपने-अपने इष्ट के गुण-दोष न जानें, चाहे टीवी ,अखबारों, समाचारों से ही सुनकर वे उन्हें पहचानें, पर पति -पत्नी को तो एक छत और चार दीवारों के बीच एक साथ ही बसना है,हँसना है और घिसना है। इसलिए एक दूसरे का भक्त बने रहना है।

कुल मिला कर यह कह सकते हैं कि ‘भक्त -पुराण’ अनन्त है।चाहे कोई संत है या असन्त है, पावस ,ग्रीष्म ,शरद या वसंत है ,परन्तु ‘भक्त – पुराण की का क्या कोई अंत है। जहाँ-जहाँ भी जाओगे, भक्तों को फूल -माला के साथ सदा खड़ा पाओगे। ये भक्त ही हैं ,जो ‘भगवान’तक जा सकने का मंत्र बताते हैं, इनकी सेवा-सत्कार के बिना वी आई पी भी दरबार में घुस नहीं पाते हैं।

भक्तों की नित कथा अनंता।
सुनिअहिं लोग-लुगाई संता।।
भक्तों के दरबार में जाना ।
पुष्प, मिठाई लेते जाना।।

इष्टदेव तक ले जाएगा ।
मनचाहा करवा पाएगा।।
जो भक्तों का आशिष पाओ।
हर गम से तुम तरते जाओ।।

रुष्ट न भक्तों को कर देना ।
खाते दूध मलाई फेना।।
इनकी बातों में रस होता।
इनसे खुलता रस का सोता।।

तुम सब आम भक्त सब खासा।
करता जो बिगड़े तव नाशा।।
‘शुभम’ न दूरी इनसे उत्तम।
और न नजदीकी है सत्यम।।

चमचा, गुर्गा पीछे कह लो।
आगे कर में माला गह लो।
भला इसीमें सदा तुम्हारा।
बहती इनमें गंगा धारा।।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’ 

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040