भाषा-साहित्य

लेखक के कर्तव्य

लेखक /साहित्यकार का अपना कुछ नहीं होता, वो सारे संसार का होता है। ऐसे में उसकी भूमिका बड़ी नहीं विस्तृत होती है। उसके कर्तव्य बढ़ जाते हैं।उसकी सोच,चिंतन संकुचित नहीं विस्तृत होनी चाहिए।सच्चे कलमकार का कर्तव्य यही होना चाहिए कि वो संसार को अपना समझे और अपने शब्दभावों से संसार भर में सुंदर, सकारात्मक, प्रेरक और एकता संवेदना, खुशहाली का भाव जागृति कर ‘मैं’ से ‘हम’ की अलग को प्रज्वलित करता रहे।
एक कलमकार की नैतिक जिम्मेदारी भी बनती/होती है कि वो अपनी लेखनी से समाज, राष्ट्र, में समावेशी विचार के साथ दशा और दिशा को भी रेखांकित करते हुए अमन, भाईचारा, सहिष्णुता और सर्वधर्म सम्भाव के वातावरण को मजबूत करता है।लेखक की सोच,चिंतन औरों से कुछ अलग होती है और वह आमतौर कुछ अलग हटकर ही सोचता है। उसकी विचारधारा जिम्मेदारी भरी होनी चाहिए।लेखक को हमेशा अपने लिए पथ प्रदर्शक की भूमिका बनाए रखनी चाहिए।
एक लेखक का हमेशा जोड़ने, सामंजस्य और सर्वश्रेष्ठ वैचारिक सृजन से अपने कर्तव्यों का,विवेक का प्रतिपादन करने के कटिबद्ध होना चाहिए। संक्षेप में कहें तो उसे खुद को सामाजिक अभिभावक की भूमिका में रखने का प्रयास करना चाहिए।
खुश रहिए, खुशियां फैलाइये, अच्छा सोचिए, अच्छा कीजिए बड़ा सोचिए बड़ा बनिये,खुद के प्रति ईमानदार रहिए, आप आम व्यक्ति नहीं ईश्वर के प्रतिनिधि हैं। विश्वास की शक्ति को पहचानिए। बस इसी भाव के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाइए। ईश्वर के अलावा संसार भी आपकी ओर विश्वास से देख रहा है।
सच तो यह है लेखक होना बहुत आसान है,परंतु लेखक बन उत्तरदायित्व निभाना तलवार की धार पर चलने जैसा है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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