गीत/नवगीतपद्य साहित्य

नर नारी का, मित्र स्वाभाविक

नर नारी का, मित्र स्वाभाविक, नर की कामना, नारी है।
इक-दूजे के लिए बने हैं, फिर, रण की क्यों तैयारी है?

शब्द ही युग्म है, नर-नारी का।
पीड़ा हरे, आँचल साड़ी का।
नारी, नर पर, हो न्यौछावर,
नर है सजाता, पथ प्यारी का।
भिन्न-भिन्न हों, राह भले ही, अटूट दोनों की यारी है।
नर नारी का, मित्र स्वाभाविक, नर की कामना, नारी है।।

आमने-सामने, आज खड़े हैं।
अपनी जिद पर, दोनों अड़े हैं।
समलिंगी, पशुता है बढ़ती,
प्रथा, परंपरा, आज सड़े हैं।
सृजन की देवी, ममता की मूरत, विध्वंश की खेले पारी है।
नर नारी का, मित्र स्वाभाविक, नर की कामना, नारी है।।

सिर्फ विकास की बातें होतीं।
पवित्र  भावनाएँ,  हैं खोतीं।
नर-नारी प्रतियोगी बनकर,
नष्ट कर रहे, जीवन मोती।
अब भी सभलो, संग-साथ रह, सींचो प्रेम की क्यारी है।
नर नारी का, मित्र स्वाभाविक, नर की कामना, नारी है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)