गीतिका/ग़ज़ल

प्यार के बंधन

प्यार के बंधन जीवन के बंधन सदा हो ।
तन मन समर्पण जीवन अर्पण सदा हो ।।
नहीं   जानता   कि   तुम  मेरे  क्या  हो  ,
मेरे  मनमीत  हो, शायद  मेरे  सखा  हो ।
मिल  जाते   हैं   सारी  खुशियां  जिसमें ,
अनमोल  सा  शायद  तुम  वो लम्हा  हो ।
बंध  गए  हैं  एक  डोर  में  मन  तेरे  मेरे ,
स्नेह से भरा यह बंधन जैसे प्रेम पगा हो ।
खुदा ने  चाहा तो  निकाह भी  तुमसे हुआ ,
दिले आलम खफा तुम से तुम ही वफा हो।
— मनोज शाह मानस 

मनोज शाह 'मानस'

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