गीत/नवगीतपद्य साहित्य

सृष्टि की रचना होती है

नारी उर में, दीप सजाती, नर बिखराता ज्योती है।
प्रकृति-पुरुष के सम्मिलन से, सृष्टि की रचना होती है।।

भिन्न प्रकृति है, भिन्न मही है।
दोनों ही अपनी जगह सही हैं।
दोनों मिल जब साथ में चलते,
दानों की राह, आनन्द मयी है।
नर भी सुख से जी नहीं सकता, नारी जब भी रोती है।
प्रकृति-पुरुष के सम्मिलन से, सृष्टि की रचना होती है।।

आपस में संघर्ष ये कैसा?
किसी को बोलो न ऐसा-वैसा।
मिल विकास की राहें खुलतीं,
अविश्वास विध्वंस है प्रलय जैसा।
नर जब पथ से विचलित होता, नारी भी पथ खोती है।
प्रकृति-पुरुष के सम्मिलन से, सृष्टि की रचना होती है।।

सच पर ही विश्वास है पलता।
संबन्धों का पुष्प है खिलता।
समर्पण से अलगाव है मिटता,
मिट जाती है, सारी कटुता।
पारदर्शी व्यवहार ही समझो, मानवता का मोती है।
प्रकृति-पुरुष के सम्मिलन से, सृष्टि की रचना होती है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)