गीत/नवगीत

गीत : होली पर विशेष

सर्वलौकिक क्षितिज के नीचे प्रतिबद्ध प्यार।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
फाग फबीला लेकर आया घर-घर में परिहास।
फूलों की खश्बू में बिखरा है हर्षोल्लास।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
आज़ादी, सौंदर्य मुहोब्बत की संज्ञा है होली।
नील गगन तक छू जाती है इस दिन यह रंगोली।
भारत के माथे तिलक लगाए सांझ का सभ्याचार।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
भिन्न-भिन्न रंगों की आभा में दिखती है परिभाषा।
नाच रही है हृदय में स्वर्ग लोग की आशा।
सुन्दर मौसम के रंगों में पाया है इकरार।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
भाईचारे के आँगन में मानवता की ज्योति।
भारत के इतिहास में है यह एक पुरानी रीति।
नाच रहा है खुशियां लेकर यह सारा संसार।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
बच्चे-बूढे नर और नारी रंगों में उत्तीर्ण।
प्रोत्त्साहन की प्राकृति में, नहीं कोई संकीर्ण।
दिल के दरिया में बहते हैं घर-घर में संस्कार।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
अम्बर को भी छू गई गि(े-भंगड़े की पराकाष्ठा।
तन मन रूह में ओजस्वी बिखर गई है नम्रता।
मदहोश हुआ है साजन की बाहों में दिलदार।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
इस दिन रिश्तों के फूलों की सुरभियां बढ़ जाती।
हर एक दिल में ही खुशहाली की फसलें लहराती।
ग़ैर बिगाने साजन मिलते, मिट जाते तकरार।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
रंग बिरंगी दस्तारें हैं जैसे टिम-टिम तारे।
स्वरूप इलाही गुरू के बच्चे दबंग प्यारे-प्यारे।
जन्नत की आभा मण्डल आनंदपुर का दरबार।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
‘बालल’ गुलशन के आँगन में फूलों के सबरंग।
सब ध्र्मों के मेले सब ध्र्मों के संग।
भारत की उत्त्तमोतमता में यह शुचिता श्रृंगार।
ढोलक ढोल मंजीरे पायल होली का त्योहार।
— बलविन्दर ‘बालम’

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409