लघुकथा

टाइम पास

उसे अकेला देख वह आपे से बाहर किसी मस्त हाथी की तरह चिंघाड़ उठा, ” हरामखोर ! इतनी देर के बाद आ रहा है और फिर भी खाली हाथ ? एक अदद कन्या का इंतजाम करने को ही तो बोला था तुझसे ? वह भी न हो सका तुझसे बदजात ?? कोई चाँद तारे तोड़ लाने जैसा मुश्किल काम तो नहीं बोला था तुझसे ?”
“हाथ लगी तो है एक कन्या मालिक …लेकिन ..!”
“लेकिन ..क्या हरामखोर ? जल्दी से बोलता क्यूँ नहीं ? रुक क्यूँ गया ?”
“लेकिन मालिक ..वह ..वह मजदूरों के टोले की लड़की है।”
उसे खा जानेवाली नजरों से घूरते हुए क्रोध में तमतमाये वह अधेड़ सा नराधम गरजा , “हरामखोर ! जा..जल्दी ले आ उसको। मजदूरों के टोले की हो चाहे कोई और …कौन सा उससे शादी करनी है।”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

4 thoughts on “टाइम पास

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते एवं धन्यवाद जी।

    • राजकुमार कांदु

      सादर नमस्कार आदरणीय ! आपकी कृपा बनी रहे🙏

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत कुछ कह दिया इस कहानी राजकुमार भाई ! यूं तो नीची जात वालों को छूना भी पाप है पर अयाशी के लिए सब ठीक है . कुछ नहीं बदलने वाला भारत में .

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय ! सादर अभिवादन 🙏 आज नैतिकता नाम की कोई चीज कहीं नजर नहीं आती। महंगाई ,भ्रष्टाचार व अराजकता का बोलबाला है और इसके थमने का कोई आसार नजर नहीं आ रहा ।
      पोस्ट का संज्ञान लेकर सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार 🙏🙏

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