पर्यावरण

अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की बेकार बैटरी बनाम अंतरिक्ष में भी प्रदूषण !

अभी पिछले दिनों दुनियाभर के समाचार माध्यमों में यह समाचार सुर्खियों में रहा कि अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन मतलब आईएसएस ने अपने एक पुरानी और बेकार हो चुकी 2.9 टन वजन की बैटरी को अपने अंतरिक्ष स्टेशन से बाहर अंतरिक्ष में कूड़े की तरह फेंक दिया है, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी या नासा के विशेषज्ञों के अनुसार यह पुरानी बैटरी अब अंतरिक्ष में ही 3-4 साल तक स्वतंत्र रूप से पृथ्वी की परिक्रमा करती रहेगी और अंत में इस धरती पर कहीं न कहीं गिर जाएगी। आपको शायद याद हो आज से 42 वर्ष पूर्व अमेरिका द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित एक प्रयोगशाला जिसे स्काईलैब के नाम से जाना जाता था,जिसे नासा ने 14 मई 1973 को अंतरिक्ष में छोड़ा था,वह लगभग पाँच साल तो ठीक-ठाक काम करता रहा लेकिन नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष में आए एक तूफान की वजह से उसके पैनल जलकर क्षतिग्रस्त होने की वजह से उसका इंजन काम करना बंद कर दिया और इसी के साथ वह पृथ्वी की तरफ गिरने लगा था,शुरू में नासा के और सोवियत संघ के वैज्ञानिकों तक को भी यह नहीं पता था कि आकाश से गिरता यह नौमंजिला इमारत के बराबर और 78 टन वजन की आफत इस धरती पर कहाँ गिरेगी,शुरूआत में दुनियाभर में यह बात फैल गई कि यह अमेरिकी स्काईलैब नामक अंतरिक्ष यान का मलवा भारत की मुख्य भूमि पर ही गिरेगा, इससे उस समय पूरे भारतवर्ष के लोगों में अफरा-तफरी मच गई,उसके बाद इसको हिन्द महासागर में गिरने का कयास लगाया जाने लगा,और यह कयास सत्यता के बहुत करीब था,क्योंकि स्काईलैब का यह मलवा हिन्द महासागर के सुदूर दक्षिणी भाग और आस्ट्रेलिया के एक निर्जन तट पर पर्थ नामक जगह पर गिरा,जिससे जानमाल की कोई क्षति नहीं हुई। तब जाकर समस्त दुनियाभर के लोगों ने राहत की साँस लिए !
मानव ने इस धरती के सभी जगहों यथा स्थल,जल,वायु ,आकाश,भूगर्भ,नदियों,पहाड़ों, समुद्रों आदि सभी जगह भयंकर प्रदूषण करके इस पृथ्वी के सम्पूर्ण वातावरण,पर्यावरण,प्रकृति के सभी तरह के जीवों जैसे,जलचरों,नभचरोंं, थलचरों आदि सभी जीवधारियों,जिसमें मनुष्य स्वयं भी शामिल है,के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर लिया है। अब तक यह सोचा जा रहा था कि पृथ्वी और इसके वातावरण को ही मनुष्य द्वारा प्रदूषित किया जा रहा है ,इसे सुधारने के प्रयास हेतु नदियों को प्रदूषण मुक्त करने,वायु प्रदूषण को मुक्त करने,भूगर्भीय प्रदूषण को मुक्त करने हेतु जरूरी कदम जैसे अत्यधिक वृक्षारोपण करके, वर्षा जल संचयन करके,पेट्रोल व डीजल चालित वाहनों की जगह गैर परंपरागत उर्जा श्रोतों मसलन,सौर उर्जा,बैट्री और प्राकृतिक गैस चालित वाहनों के प्रयोग से भविष्य में प्रदूषण के स्तर को कम करने का प्रयास किया जायेगा,परन्तु अब इस पृथ्वी और इसके वातावरण से इतर अंतरिक्ष में भेजे गये,मानव निर्मित अंतरिक्ष यानों की वजह से एक बहुत ही खतरनाक तरह का प्रदूषण का खतरा समस्त मानव जाति और इस पृथ्वी के समस्त जीव जगत पर खतरा मंडरा रहा है ।
सन् 1957 में तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा निर्मित किए गये कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक-1को छोड़े जाने के बाद अब तक एक अनुमान के अनुसार लगभग 23000 से भी ज्यादे उपग्रहों को अंतरिक्ष में दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा छोड़ा जा चुका है । इन छोड़े गये उपग्रहों में आज केवल उनके 5 प्रतिशत ही सक्रिय हैं शेष सभी 95प्रतिशत उपग्रह अंतरीक्षीय कचरे के रूप में पृथ्वी की कक्षा में बगैर किसी नियन्त्रण के, लगभग 30000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार मतलब ध्वनि की गति से लगभग 24 गुना या बंदूक की निकली गोली से 22 गुना ज्यादा गति से घूम रहे हैं,जो प्रतिदिन आपस में टकरा-टकराकर,टूटकर अपनी संख्या दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बढ़ा रहे हैं । इनके सतत टकराने की दर इनकी संख्या वृद्धि के साथ और बढ़ रही है ,इस टकराने की श्रृंखला अभिक्रिया के चेन रिएक्शन को कैस्लर सिंड्रोम के नाम से वैज्ञानिक विरादरी संबोधित करती है । यूरोपीय स्पेस एजेंसी यानि इएसए और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष में वर्तमान समय में 6 हजार टन अंतरीक्षीय कचरा पृथ्वी की कक्षा में बड़े और बेकार अंतरिक्षयानों के मलवों के साथ-साथ अन्य छोटे टुकड़े भी जो कुछ मिलीमीटर से लेकर 10 सेंटीमीटर तक के आकार के हैं अब उनकी संख्या अब टूट-टूटकर अब 750,000 की अविश्वसनीय संख्या तक पहुँच चुकी है,तैर रहे हैं। अंतरीक्षीय कचरा बढ़ाने में चीन ने 2007 में बहुत बड़ा योगदान अपनी एक एंटी सेटेलाइट मिसाइल से अपने ही एक पुराने मौसम उपग्रह को अंतरिक्ष में नष्ट किया था,उसके फलस्वरूप उसके हजारों टुकड़े अंतरिक्ष में मलवे के रूप में बिखेर कर,किया । इसी प्रकार फ्रांस के एक सेना का उपग्रह,जो सन् 1996 में,उसी के दस साल पूर्व छोड़े गये एक बेकार उपग्रह से टकराकर हजारों टुकड़ों में अंतरिक्ष में कूड़े के रूप में बिखरकर पृथ्वी की कक्षा में तभी से अत्यन्त खतरनाक गति से अंतरीक्षीय कूड़े में अपना योगदान कर रहे हैं । इन टुकड़ों की गति आकाश में उड़ रहे विमानों की गति से 40 गुना और ध्वनि की गति से 24 गुना होती है । इतनी तीव्र गति से घूम रहे इन धातु के टुकड़ों का अगर एक छोटा सा टुकड़ा भी आकाश में उड़ रहे विमानों या अंतरिक्ष यानों से टकरा जाय तो ये विमान या अंतरिक्ष यान को तुरन्त नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। प्राकृतिक उल्कापिंडों और इन उपग्रहों के टुकड़ों में मूलभूत अंतर यह है कि अधिकतर प्राकृतिक उल्कापिंड पृथ्वी पर गिरते समय अत्यधिक वेग और वायुमंडलीय घर्षण की वजह से गर्म होकर पृथ्वी की सतह पर आने से पूर्व ही आकाश में ही जलकर भस्म हो जाते हैं,परन्तु ये निष्क्रिय और टूटे-फूटे अंतरिक्ष यानों के टुकड़े,ऐसे मिश्र धातुओं से बनाए जाते हैं,जो पृथ्वी के वायुमंडल के घर्षण के बावजूद आकाश में जलकर भस्म नहीं होंगे, अपितु अगर ये अनियंत्रित और अत्यधिक गर्म धातु के टुकड़े घनी मानव बस्तियों,कस्बों,शहरों पर गिरेंगे तो वे बहुमूल्य मानव जीवन के लिए अत्यन्त घातक सिद्ध होंगे । अभी 2017 में एक मिलीमीटर का एक छोटा सा टुकड़ा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की अत्यन्त मजबूत काँच की खिड़की से टकरा गया था,उसने इतनी जोरदार टक्कर मारी कि उसका शीशा टूट गया था । इन टुकड़ों की अत्यधिक स्पीड की वजह से ये टुकड़े किसी भी उपग्रह,अंतरिक्ष शटल,अंतरिक्ष स्टेशन, अंतरिक्ष में चहलकदमी यानि स्पेसवाक करते हुए अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेस शूट को भी चीरते हुए उनके शरीर के आरपार निकल सकते हैं !
अंतरिक्ष में इतने तीव्र गति से ये मिश्र धातु के टुकड़े निश्चित रूप से अनन्त काल तक पृथ्वी की कक्षा में नहीं रहेंगे,अपितु उनकी गति,वायु के घर्षण व पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षणीय अवरोध आदि विभिन्न कारणों से क्रमशः मंद होती जायेगी और एक न एक दिन वे पृथ्वी के शक्तिशाली गुरूत्वाकर्षण की वजह से बहुत ही तेज गति से पृथ्वी की सतह की तरफ गिरेंगे,जो पृथ्वी के वायुमंडल के घर्षण से अत्यधिक उच्च तापक्रम तक आग के गोले बनकर धरती पर गिरेंगे,अत्यन्त दुखद बात ये है कि प्राकृतिक रूप से अंतरिक्ष से गिरने वाले 99 प्रतिशत उल्कापिंड वायुमंडल के घर्षण से आकाश में ही जलकर समाप्त हो जाते हैं,परन्तु ये मानव निर्मित धातु के टुकड़ों का निर्माण इस तरह की धातुओं से किया गया है कि वे वायुमंडल के तीव्रतम घर्षण में भी नहीं जलेंगे,कल्पना करिये ये लाखों डिग्रीसेंटीग्रेड गर्म आग के दहकते गोले किसी घनी मानव बस्ती पर गिरें तो उस तबाही का मंजर बहुत ही हृदय विदारक,कारूणिक और वीभत्स होगा इसलिए विश्व के वैज्ञानिक विरादरी को इन धातु के लाखों टुकड़ों को अंतरिक्ष में ही निस्तारण का कोई न कोई तरीका शीघ्रातिशीघ्र किसी अप्रिय घटना घटने से पूर्व ही ढूंढ लेना चाहिए ।

साभार-ललिता शर्मा
संकलन– निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल .nirmalkumarsharma3@gmail.com