कविता

मैं थकने लगा हूँ

इस जीवन की भागदौड़ में भाग भाग कर मैं थकने लगा हूँ,
रातों को सोते सोते जागने लगा हूँ।
बचपन में तितलियों को पकड़ना आती है याद,
एक चॉकलेट के लिए करता था फरियाद।

जब गुब्बारों को देख हृदय कम्पित हो जाते थे,
तब नानी से चंदा मामा की कहानी सुन सो जाते थे।
जब इंद्रधनुष पे मन मोहित हो जाते थे,
तब कागज की नाव बरसातों मे चलाते थे।

काश कोई मुझे ले चलता बचपन की यादों की छांव में
अपनी इस बुढ़ापे को लगा देता दांव में।
—  मृदुल शरण