गीत/नवगीत

प्रीत वाला रंग

कान्हा लिए अबीर हैं डोलें
गोप गोपियन लिए जी संग।
उत राधे चुपके से राह निहारें
झोली में लिए प्रीत वाला रंग।
मस्ती छायी लिए रंग बसन्ती
बगियन में है कोयलिया गाये।
ढोलक के संग मंजीरा  बाजै
मन के सबको होली ये भाये।
कोई गाये है होली में कबीरा
कोई जी करता फिरै हुडदंग।
नेह मेह बरसे देखो खुलकर
दुश्मन से भी प्रीत सब जोड़ें।
बीती कड़वाहट बह रही सभी
कुछ हम छोड़ें कुछ वे छोड़ें।
कान्हा लिए अबीर हैं डोलें
गोप गोपियन लिए जी संग।
चहुँओर दिखे बस रंग अबीर
मन के सारे रंग काले बह गये।
जीत गयी मानवता चहुदिशि
दुश्मन हैं खड़े ठगे से रह गये।
बाजत पैरों में देखो पैंजनिया
ढोलक की थाप मन में उमंग।
— डाॅ सरला सिंह ‘स्निग्धा’

डॉ. सरला सिंह स्निग्धा

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