गीतिका/ग़ज़ल

फागुन में

मतवाले फागुन में, घुला अनोखा वात है,
भंग पी के सबके, मस्त मलंग गात है।
सही बयार, अलसाया गात, भौंरे कलियों पे,
होली में परदेशी आए, आई मिलन की रातहै।
अवगुंठन बन बैठी, आज पी से लड़ बैठी,
जरुरी हुई अनबन, कुछ न कुछ बात है।
चढ़ा नशा जब भंग, हर तरफ एक ही रंग,
फागुन में बच के रहना, बहके हुए जज्बात है।
कलियां बचके रहना इस फागुन में।
मतवाले भौंरे लगा के बैठे घात है।
कोरोना के कारण, मास्क लगा, दूरी बनाओ,
होली में भी अजब हुए हालात हैं।

— प्रेमा पटेल

प्रेमा पटेल

वरिष्ठ कवयित्री एअरपोर्ट कालोनी,बाबतपुर, वाराणसी-उत्तर प्रदेश