कविता

कर्म जीवन का मर्म

कर्म, कर्म, कर्म!
कर्म जीवन का मर्म।
सक्रियता ही,
जीवन की निशानी है।
इच्छाएँ, कामनाएँ,
बाधाएँ, पीड़ाएँ,
आस्थाएँ और भावनाएँ,
चुनौतियों का बीड़ा,
तर्क-वितर्क के होते हुए भी,
कर्म के बिना,
व्यक्ति है बस एक कीड़ा।
जीना ही है,
सबसे प्राचीन धर्म!
कर्म, कर्म, कर्म!
कर्म जीवन का मर्म।

छोटा हो या बड़ा,
अमीर हो या गरीब,
बैठा हा या खड़ा,
गतिमान हो या अड़ा,
चलना ही,
जीवन की निशानी है,
थम गया जो,
वह है मरा।
जो पड़ गया,
वो है सड़ा।
कर्म से कैसी शर्म?
कर्म ही है सच्चा धर्म।

कर्म, कर्म, कर्म!
कर्म जीवन का मर्म।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)