कविता

अवनी

अवनी की इस चादर में ,
बैठी रही दिन रात में।
शान्ति ढूंढ रही थी में,
वसुंधरा की लहरों में।।

झूम रही गगन तले में,
वसंत की मधुरिमा में।
भँवरों की मधुशाला में,
गुलाब की पंखुडियों में।।

अम्बर के तले अचला में,
प्रकृति की सीमाओं में।
आशाओं की वेदना में ,
मन की तरू लताओं में।।

— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ उत्तराखण्ड

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)