कविता

पत्नी

तेरा मिजाज़ भी
बरसात सा है
पता नहीं
कब झमाझम
बरस जाए
और कब बरस कर निकल जाए
कभी आंधी सी चल पड़े
कभी मंद पड़ जाएं
बहुत मुश्किल है समझना तुझको
कब धूप
कब छांव हो जाए
*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020