कविता

यूँ तो शान्ति 

यूँ तो शान्ति

किसे नहीं सुहाती
फिर चाहे
पशु-पक्षी हो या इंसान
शान्ति का होता एक विज्ञान
जो आरोग्य प्रदान करता
तन का मन का
जो साथ देता जन-जन का
शान्ति घर की गली की
गाँव-शहर की
अद्भुत रस देती है
शान्ति दो देशों की
बहुत कुछ कहती है
पर आज कोलाहल
परवान पर है
जिसके तिलिस्म का असर
हर इंसान पर है
जबसे संसार ने
प्रकृति की शान्ति को
वीभत्स रूप दे दिया
लगता है बदले में उसने
उसे कोरोना दे दिया
लाॅक डाउन से पसरा
ये अजीब सन्नाटा
सड़कों बाजारों संग
गलियों में शान्ति तो दर्शाता है
पर मन ही मन इंसान को
दहलाता है
शान्ति अंदर की
और बाहर की
जब तक ना आयेगी
तब तक ये महामारी
बिन बुलाये मेहमान की तरह
सबको सतायेगी
यूँ ही ना जायेगी
अब हमें स्वयं संग
परिस्थिति को समझना होगा
इस महामारी से
मिलजुल कर लड़ना होगा
— व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201