कविता

एक रचना शेष है

दुनिया की उत्तम किताब है हम ,

मगर खुद को पढ़ना शेष है।

 

पोथी पढ़-पढ़ थक हारे हैं,

बिना मौत खुद को मारे हैं

ईश्वर हैं पर सत्य न बूझें ,

पूज रहे मंदिर हम

विधना की उत्तम रचना है हम ,

मगर खुद को पूजन शेष है।

 

अक्षर होकर क्षर ही जोड़ा

राह बना, अपना पग मोड़ा

तिनका-तिनका चले जोड़ने ,

जोड़-जोड़कर हर दिल को तोडा

छंदों का उत्तम निभाव हम

मगर खुद का निभना शेष है

 

डर मत, उछल-कूद मस्ता ले,

थक जाए तो रुक सुस्ता ले

क्यों यंत्रों सा जीवन जीता?

चल पंछी बन, मस्त गगन उड

कर्मों की उत्तम कविता हम ,

मगर खुद को कहना शेष है।

— डॉ.सारिका ठाकुर “जागृति”

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)