गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

पीड़ित मानवता पर कितने वार करोगे कोरोना?
इस रण में तुम कब अपने हथियार धरोगे कोरोना?

लाखों लोगों के प्राणों को चट करके भी भूखे हो,
जाने और अभी कितनों के प्राण हरोगे कोरोना?

दुष्ट आत्माओं के जैसे देहों में घुस जाते हो,
किस ओझा के तंत्र-मंत्र को देख डरोगे कोरोना?

जो भी आता है इस जग में, उसको जाना होता है,
रक्तबीज हो पर तुम भी इक रोज मरोगे कोरोना।

वायरसों के हर हमले का तोड़ ढूँढ ही लेंगे हम,
देखें कब तक डटे रहोगे, नहीं टरोगे कोरोना?

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)