सामाजिक

जन्मदिन

मेरे जन्मदिन पर जब भी मुझे बधाई सन्देश मिलते हैं, मैं सोच में पड़ जाता हूँ, क्या जवाब दूँ? क्या जन्मदिन वास्तव में ख़ुशी की बात है? है तो क्यों, और नहीं है तो क्यों।

हिन्दू धारणा के अनुसार मनुष्य जन्म चौरासी हजार योनियों के बाद मिलता है, इसलिए हमें मनुष्य जन्म मिला इसके लिए हमें ईश्वर का आभारी तो होना ही चाहिए, और जन्मदिन पर यदि यह बात याद रखी जाए तो अवश्य जन्मदिन मनाना सार्थक है।

यदि हम जन्मदिन पर इस बात को भूल जाएँ और जन्मदिन सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए मनाएं तो हममें और बच्चों में फर्क ही क्या रह जाएगा। हम बड़े तो हो गए पर बुद्धि हमारी वहीँ बचपन पर ही अटक गयी।

जन्मदिन मनाने का एक कारण है की आप आज जिन्दा हैं अगले जन्मदिन पर जिन्दा होंगें या नहीं। वैसे तो व्यक्ति का हर दिन जन्मदिन होता है, क्योंकि जिन्दा रहना एक चमत्कार है, मौत तो पक्का है की कभी न कभी आएगी। जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं आज हैं कल होंगें की नही।

जन्मदिन क्या होता है, लोग इसे बड़े उत्साह से क्यों मनाते हैं, जीवन क्या है, इत्यादि विषयों पर मैं बहुत मनन करता हूँ। मैनें अपना जन्मदिन मनाने में कभी कोई रूचि नहीं दिखाई, भले ही अपने नीयर डीयर को शायराना अंदाज में बधाई जरूर देता रहा।

विश्व में करोड़ों लोग लोग क्रिसमस मनाते हैं, कितने हैं जो इस दिन ईसा मसीह को याद करते हैं? त्यौहार जरूर मनाया जाता है, पर अपनी ख़ुशी के लिए, न की ईसा मसीह को याद करने के लिए।

जन्मदिन गौतम बुद्ध, गुरु नानक देव जी, स्वामी विवेकानंद, महावीर, भगवान् राम, भगवान् श्री कृष्ण जी और सैंकड़ों उन महान विभूतियों का मनाने लायक है, जिन्होंने जन्म लेकर अपना जगत में आना सार्थक कर दिया, जिनके जन्म के कारण सोये हुए लोग जागे, मनुष्यता का कल्याण हुआ। क्या हमने जन्म लेकर कुछ ऐसा किया जिसके कारण हम अपने जन्म पर नाज़ कर सकें?

मौत सबको आती है, जीना सबको नहीं आता।

महामारी से जूझ रहा ज़माना,

ऐसे में जन्मदिन क्या मनाना।

जन्मदिन क्या मनाना,

जब गम में डूबा हो ज़माना।

एक तरफ नहीं मिल रहा कईयों को खाना,

मैं तो भूल गया मुस्कराना।

मिट्टी से ही आये हैं मिट्टी में ही मिल जाना है,

जब हकीकत यही है तो किस बात पे इतराना है।

बहुत कुछ सिखाया जिंदगी के सफर ने अनजाने में,

वो किताबों में दर्ज था ही नहीं, जो पढ़ाया सबक जमाने ने।

किस हद तक जाना है, ये कौन जानता है,

किस मंजिल को पाना है ये कौन जानता है,

दोस्ती के दो पल जी भर के जी लो,

किस रोज़ बिछड जाना है ये कौन जानता है.!

मांगो तो अपने रब से मांगो,

जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत ।

लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना,

क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी ।

दरिया खुद अपना पानी नहीं पीता,

पेड़ खुद अपना फल नहीं खाते,

सूरज अपने लिए हर दिन नहीं उगता,

फूल अपनी खुशबू अपने लिए नहीं फैलाते,

क्योंकि दूसरो के लिए जीना ही असली ज़िन्दगी है।

ज़िन्दगी जियो तो जरुरत के मुताबिक,

कभी भी ख्वाईशो के मुताबिक नहीं,

क्योंकि जरुरत तो फकीरो की भी पूरी हो जाती है

और ख्वाहिशें अमीरो की भी अधूरी रह जाती हैं ।

ईश्वर मेरे बिना भी ईश्वर है जबकि मैं ईश्वर के बिना कुछ नहीं।

इंसान थोड़ा सा मस्तीखोर होना चाहिए, सीरीयस लोग तो अस्पताल में मिलते हैं

जिसकी मस्ती जिन्दा है, उसकी हस्ती जिन्दा है,

वरना यूं समझ लो वह जबरदस्ती ज़िंदा है।

ओस की बूँद सा है ज़िन्दगी का सफर

कभी फूल में कभी धूल में

असल में वही जीवन की चाल समझता है,

जो सफर में धूल को गुलाल समझता है ।

किसी ने हमें आशिक़ कहा;

किसी ने कहा दीवाना;

इन आँखों में आंसू तब आये;

जब कुछ अपनों ने ही हमें कहा बेगाना।

आस्तिक हूँ कभी नास्तिक हूँ,

पर मैं जितना भी हूँ, वास्तविक हूँ.

अब मत खोलना मेरी ज़िन्दगी की किताब को,

जो था, वो मैं रहा नहीं, जो हूँ किसी को पता नहीं।

इस दिल ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा,

ये बात और है मुझे ये साबित करना नहीं आया।

कोई चाहे  कितना भी महान क्यों न हो जाए कुदरत कभी भी किसी को महान बनने का मौका नहीं देती। कंठ दिया कोयल को तो रूप छीन लिया। रूप दिया मोर को तो इच्छा छीन ली। इच्छा दी मनुष्य को तो संतोष छीन लिया । संतोष दिया संत को तो संसार छीन लिया। देवी देवताओं को संसार चलाने दिया तो मोक्ष छीन लिया। मोक्ष दिया निराकार को तो आकार छीन लिया।

मत करना गुरुर अपने आप पर ऐ इंसान,

रब ने मेरे जैसे कितने मिटटी से बना के मिटटी में मिला दिए।

तारीख गवाह हैं जिन्हें अखबारों में बने रहने का शोक रहा हैं,

वक़्त बीतने के साथ वो रद्दी के भाव बिक गए

थोड़ा थक गया हूँ दूर निकलना छोड़ दिया है,

पर ऐसा नहीं है कि मैनें चलना छोड़ दिया है,

फासले अक्सर रिश्तों में दूरी बढ़ा देते हैं,

पर ऐसा नहीं है कि मैनें अपनों से मिलना छोड़ दिया है,

हाँ जरा अकेला हूँ दुनिया की भीड़ में,

पर ऐसा नहीं है कि मैनें अपनापन छोड़ दिया है,

याद करता हूँ अपनों को, परवाह भी है, मन में,

बस कितना करता हूँ ये बताना छोड़ दिया है।

बस दुआएँ बटोरनें आया हूँ इस दुनिया में दोस्तों

माँ ने कहा दौलत तो साथ जाती नहीं।

अभी ना पूछो हमसे मंज़िल कहाँ है;

अभी तो हमने चलने का इरादा किया है;

ना हारे हैं ना हारेंगे कभी;

यह किसी और से नहीं बल्कि खुद से वादा किया है।

जिंदगी में कुछ ऐसा मुकाम हासिल करने की कोशिश करो,

कि लोग आपका नाम फेसबुक पे नहीं गूगल पर ढूढें।

मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है;

ज़िंदगी में हर मोड़ पर एक इम्तिहान होता है;

डरने वालों को मिलता नहीं ज़िंदगी में कुछ भी;

लड़ने वालों के क़दमों में सारा जहान होता है।

— रविन्दर सूदन

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।

2 thoughts on “जन्मदिन

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    रविंदर भाई , जितना भी आप ने लिखा, सब फिलोसोफी ही है जो आप ने दिल से लिखी है . आप की बहुत बातों से मैं सहमत हूँ, यह जन्म दिन मनाना बस एक फैशन ही बन गिया है वर्ना इस में कोई जान नहीं है . सच कहूँ, मेरे लिए भी यह बेकार का रिवाज़ ही है लेकिन बच्चे कुछ न कुछ ले आते हैं . उन को बहुत दफा कह चुक्का हूँ लेकिन वोह करते हैं . जन्म दिन मनाने की बात कहूँ तो मुझे तो इंग्लैंड आने के बाद ही पता चला कि कोई जन्म दिन भी होता है . एक बात आप को बताऊं कि लोग जो मुझे समझते हैं , मैं वैसा नहीं हूँ . मैं कोरा नास्तिक हूँ . इस जन्म और उस जन्म की बातों पर मेरा कोई भी विशवास नहीं .मैं समझता हूँ की हमारा अगला जन्म तो कब का हो चुक्का है . यह जो हमारे जीवन साथी और बच्चे हैं, मैं समझता हूँ , यही हमारा अगला जन्म है . अगर यह लोग हमें दुःख न दें , तो मैं समझता हूँ , यह स्वर्ग है , इन से दुःख मिलता है तो नर्क है और हम भोग रहे हैं . इस शरीर को मैं एक मशीन ही समझता हूँ . जब दिल की धडकन एक दम बंद हो गयी तो शरीर मिटटी से भी बदतर हो जाता है क्योंकि इस को अगर जल्दी से जलाते या दबाते नहीं तो इस में कीड़े पड़ने शुरू हो जाते हैं . रात को हम सोते हैं तो जिंदा लाश की तरह ही होते हैं , बस ऐसे ही जब मर जायेंगे तो मिटी बन कर मिट्टी में ही मिल जायेंगे . एक बात और भी है , कि जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है , शरीरक समसियायें तो आती ही है मगर बहुत दफा हमे अपनों से ही दर्द मिलता है जो हम ना तो किसी को बता सकते हैं , ना ही झेलने की समर्था होती है . बताने और ना बताने में ही हमारा अन्तं समय आ जाता है .

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय गुरमेल भाई साहब, सादर नमन । आपने जो प्रतिक्रिया लिखी उसका एक एक शब्द सच है। मेरी फिलॉसफी से सहमत होने के लिए आपका आभारी हूँ। न नास्तिक होना गलत है, न आस्तिक होना बहुत अच्छी बात। बात है, क्या आप अपने जमीर की सुनते हैं। क्या आप अपने आप से खुश हैं ? मेरा लेख पढ़कर प्रतिक्रिया देने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद।

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