कहानी

सरसों के फूल

साक्षी कई दिनों से बहुत व्यस्त थी। उसकी पीएचडी की परीक्षा पास आ रही थी चार सालों की जी तोड़ मेहनत का परिणाम मिलने का समय आ गया था। वह चाहती थी कि सब कुछ ठीक से हो जाए और उसे डिग्री मिल जाए। पिछले चार सालों में जीवन में बहुत उथल पुथल रही। किन्तु साक्षी ने उसका प्रभाव अपने काम पर नहीं पड़ने दिया। जीवन में वसंत आया और चला भी गया। सभी एहसासों को उसने अपने मन में दबा कर रखा। प्रयोगशाला में प्रवेश नहीं करने दिया।
निश्चित तिथि को परीक्षक महोदय डॉक्टर जानकी आ पहुंची। उनके रहने खाने की व्यवस्था साक्षी की गाइड डॉक्टर विमला ने अपने घर पर की हुई थी। डॉक्टर विमला ने बताया था कि वो उनकी सहपाठी रही थी। दोनों को पीएचडी की डिग्री भी साथ ही मिली थी। अपनी गाइड से साक्षी को सहायता की उम्मीद नहीं थी। बल्कि उसके जीवन में आई उथल पुथल का कारण भी कहीं न कहीं डॉक्टर विमला ही थी। कोई दूसरा स्कॉलर होता तो पीएचडी छोड़कर जा चुका होता। लेकिन साक्षी विपरीत परिस्थितियों में भी अपना काम उतनी ही तन्मयता से करती रही। उसी कठिन परिश्रम और सब्र का फल मिलने का समय आ गया था।
पूरी प्रयोगशाला को साक्षी ने अपने हाथों से साफ किया था। प्रयोगशाला के पीछे बने बगीचे से पीले सरसों के फूल अपने हाथों से सजाकर परीक्षक महोदया की मेज़ पर रखे थे। उसे पता चल गया था कि उनको पीले सरसों के फूलों से विशेष लगाव था। डॉक्टर जानकी जीव विज्ञान के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम थी। उनके अनेक शोधपत्र साक्षी ने पढ़े थे। साक्षी चाहती थी कि वो उन्हें अपने काम से प्रभावित कर पाए ताकि भविष्य में उनके साथ काम करने का अवसर प्राप्त हो सके।
डॉक्टर जानकी के साथ लगभग एक घंटे तक वार्तालाप हुआ। साक्षी जितना डर रही थी डॉक्टर जानकी ने उतनी ही सहजता से उससे प्रश्न पूछे। प्रश्न कठिन थे लेकिन उनका उद्देश्य प्रश्नों का उत्तर जानना ही था साक्षी का मनोबल गिराना नहीं।  विषय पर उनकी मजबूत पकड़ ने साक्षी को बहुत प्रभावित किया। डॉक्टर जानकी भी खुश ही दिख रही थी। परन्तु अपने आप उन्होंने साक्षी को कुछ नहीं कहा। परिणाम के बारे में डॉक्टर विमला ही बताने वाली थी। परीक्षा के बाद साक्षी को डॉक्टर जानकी के साथ बाज़ार तक जाना था। शहर की प्रसिद्ध वस्तुएं भी उनको खरीदनी थी। प्रमुख स्थान भी देखने थे।
साक्षी उनके साथ दिन भर बाज़ार में घूमती रही। शाम को एक छोटी सी दुकान पर दोनों चाय पीने के लिए रुकी। चाय वाले का उत्साह देखते ही बनता था। बर्तन धोकर, अदरक, तुलसी डालकर उसने चाय बनाना शुरू किया। डॉक्टर जानकी बातें करती जा रही थी। साक्षी भी उनसे घुल मिल गई थी। बातों बातों में उन्होंने साक्षी से उसके भविष्य की योजनाओं के विषय में पूछा। साक्षी ने तुरंत जवाब दिया,” मैडम, अभी अपने मित्र राजन से मुझे मिलना है। उसके बाद आगे का निश्चय करूंगी। डॉक्टर जानकी ने राजन के विषय में पूछा तो उसने सब कुछ बता दिया। राजन साक्षी का सहपाठी था। दोनों साथ साथ इस संस्थान में पीएचडी करने आए थे। शुरू के दो साल दोनों काम में डूबे रहे। काम में डूबे डूबे एक दूसरे के मन में भी उतर गए। लेकिन तीसरे साल डॉक्टर विमला की बेटी ने प्रयोगशाला में आना प्रारम्भ किया तो सब बदल गया। वह पूरे समय राजन के साथ ही रहती थी। साक्षी ने पूछा तो राजन ने इतना ही बताया कि उसे जल्दी अपनी पीएचडी ख़त्म करके आगे पढ़ाई के लिए विदेश जाना है। इसीलिए डॉक्टर विमला के कहने पर वह उसकी मदद कर रहा है। साक्षी उसकी सफाई से संतुष्ट नहीं थी लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी इसलिए चुप ही रही। तीन साल होते ही राजन और शुभि दोनों को पीएचडी की डिग्री मिल गई और दोनों ही आगे की पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए। साक्षी उसी प्रयोगशाला में काम करते हुए रह गई। उसके पूछने से पहले ही डॉक्टर विमला ने बता दिया कि उसका और शुभि का काम एक जैसा ही था। शुभि ने जल्दी पूरा कर लिया इसलिए उसे स्कॉलरशिप मिल गई। साक्षी पूरी तरह टूट गई थी लेकिन मम्मी पापा के समझाने पर उसने अपना काम जारी रखा। दिल के दर्द को प्रयोगशाला से बाहर रखा।  निराशा  के दौर में भी उम्मीद का दामन थामे रखा।
उसके बारे में जानकर डॉक्टर जानकी भी थोड़ी उदास हो गई। चाय खत्म करके दोनों वापिस आ गए। अगले दिन डॉक्टर जानकी को विदा करके साक्षी मम्मी पापा के पास आ गई। कुछ दिन उनके साथ बिताना चाहती थी।
एक हफ्ते बाद उसने मेल देखा तो डॉक्टर जानकी का मेल आया हुआ था। उन्होंने अपने अगले प्रोजेक्ट में उसे हेड नियुक्त किया था और कल ही उसे अपनी नई जॉब के लिए जाना था। साक्षी अगले दिन डॉक्टर जानकी की प्रयोगशाला में उनके सामने बैठी थी। उसके असिस्टेंट की लिस्ट में राजन और शुभि के नाम भी थे। डॉक्टर जानकी ने साक्षी को छेड़ा ” साक्षी मैडम कल आप अपने असिस्टेंट राजन से गुफ्तगू कर लेना।” साक्षी मुस्कुराई। ” अब बात नहीं करना चाहती मैडम। आपने मेरा खोया आत्मविश्वास वापिस लौटा दिया है।” डॉक्टर जानकी बाहर देख रही थी। साक्षी ने देखा पीली सरसों के अनगिनत फूल बसंती रंग बिखेर रहे थे। यह वसंत साक्षी के आत्मसम्मान को उसका हमसफर बना गया था।
— अर्चना त्यागी

अर्चना त्यागी

जन्म स्थान - मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश वर्तमान पता- 51, सरदार क्लब स्कीम, चंद्रा इंपीरियल के पीछे, जोधपुर राजस्थान संपर्क - 9461286131 ई मेल- tyagiarchana31@gmail.com पिता का नाम - श्री विद्यानंद विद्यार्थी माता का नाम श्रीमति रामेश्वरी देवी। पति का नाम - श्री रजनीश कुमार शिक्षा - M.Sc. M.Ed. पुरस्कार - राजस्थान महिला रत्न, वूमेन ऑफ ऑनर अवॉर्ड, साहित्य गौरव, साहित्यश्री, बेस्ट टीचर, बेस्ट कॉर्डिनेटर, बेस्ट मंच संचालक एवम् अन्य साहित्यिक पुरस्कार । विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा, बाल प्रहरी संस्थान अल्मोड़ा द्वारा, अनुराधा प्रकाशन द्वारा, प्राची पब्लिकेशन द्वारा, नवीन कदम साहित्य द्वारा, श्रियम न्यूज़ नेटवर्क , मानस काव्य सुमन, हिंदी साहित्य संग्रह,साहित्य रेखा, मानस कविता समूह तथा अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित। प्रकाशित कृति - "सपने में आना मां " (शॉपिजन प्रकाशन) "अनवरत" लघु कथा संकलन (प्राची पब्लिकेशन), "काव्य अमृत", "कथा संचय" तथा "और मानवता जीत गई" (अनुराधा प्रकाशन) प्रकाशन - विभिन्न समाचार पत्रों जैसे अमर उजाला, दैनिक भास्कर, दैनिक हरिभूमि,प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका,पंजाब केसरी, दैनिक ट्रिब्यून, संगिनी मासिक पत्रिका,उत्तरांचल दीप पत्रिका, सेतू मासिक पत्रिका, ग्लोबल हेराल्ड, दैनिक नवज्योति , दैनिक लोकोत्तर, इंदौर समाचार,उत्तरांचल दीप पत्रिका, दैनिक निर्दलीय, टाबर टोली, साप्ताहिक अकोदिया सम्राट, दैनिक संपर्क क्रांति, दैनिक युग जागरण, दैनिक घटती घटना, दैनिक प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, निर्झर टाइम्स, दिन प्रतिदिन, सबूरी टाइम्स, दैनिक निर्दलीय, जय विजय पत्रिका, बच्चों का देश, साहित्य सुषमा, मानवी पत्रिका, जयदीप पत्रिका, नव किरण मासिक पत्रिका, प दैनिक दिशेरा,कोल फील्ड मिरर, दैनिक आज, दैनिक किरण दूत,, संडे रिपोर्टर, माही संदेश पत्रिका, संगम सवेरा, आदि पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन। "दिल्ली प्रेस" की विभिन्न पत्रिकाओं के लिए भी लेखन जारी है। रुचियां - पठन पाठन, लेखन, एवम् सभी प्रकार के रचनात्मक कार्य। संप्रति - रसायन विज्ञान व्याख्याता एवम् कैरियर परामर्शदाता।