लघुकथा

पसंद

लघु कथा

पसंद

छोटे भाई की शादी में परिमल अपनी पत्नी चंदा के साथ शादी के ठीक तीन दिन पहले ही अपने घर पंहुच सका। चाहता था कि शादी के पांच दिन पहले और दो दिन बाद तक कम से कम वह घर में चंदा के साथ रुके पर उसे बाॅस ने सिर्फ पांच दिन की ही छुट्टी स्वीकृत की थी। वह पिछले लगातार दो रविवार घर पंहुच कर शादी की तैयारियाँ का जायजा ले चुका था। उसके बड़े जीजा जी और जीजी सारी रस्मों की तैयारी कर चुके थे। सारी खरीदारियाँ मसलन लेन देन के कपड़े लत्ते, जेवर आदि किसको क्या देना है, कैसा देना है सब चीज का निर्णय हो चुका था।
परिमल ने अपनी पत्नी को पहले ही हिदायत दे दिया था, कि घर में लोग कुछ बोले, कमेंट करे तो पलट कर जवाब नहीं देना। वह जानता था कि उसकी पत्नी को उसकी माँ पसंद नहीं करती, शादी जो उसने अपनी मर्जी से किया है। मां की पसंद को ठुकरा कर अपनी पसंद से शादी की थी।
घर पंहुचे ही ताने सुनने को मिल गया – “बड़ा बेटा है पर घर की फिक्र नहीं है।” परिमल ने जवाब देना उचित नहीं समझा क्योंकि पिछले रविवार को ही वह घर में सबको बता चुका था। थोड़ी देर हलकान हो लेने के बाद जीजा जी से मिलकर सारी बातें समझकर अपना रोल समझ लिया कि उसे क्या क्या करना है।
शादी के लिए बारात निकलने के पहले की शाम परिमल और चंदा अपने कमरे में एक साथ बैठकर चाय पी रहे थे। उसी समय जीजी आयी, उनके हांथों में साड़ियों के पांच पैकेट थे और दिखाकर बोली – परिमल भैया और भाभी, आप इन पांचों में से एक आप दोनों पसंद कर लें, मां कही है कि बारात लौटने के दूसरे दिन सबको आपाधापी मची रहेगी, जल्दी अपने अपने घर वापस जाने की।
परिमल – जीजी, जो देना है , रख दो न। वैसे भी घर के लोगों को कपड़े देने की क्या जरूरत है ? चंदा तो घर की बहू है। मेहमान तो नहीं है न।
जीजी – मां बोली है कि बहू को उसकी पसंद की साड़ी दो, वही लेकर आयी हूं।
चंदा – जीजी, जो देना है, दे दीजिए।
जीजी – नहीं आप पसंद पहले कर लें।
फिर जीजी ने पांचो साड़ी के डब्बे का ढक्कन खोल दी। चार साड़ियां अच्छे स्तर की और एक उन चारों से निम्न थी। चंदा को सुनहरे किनारे वाली साड़ी अच्छी लगी, और उसने उस पर हांथ रखा।
जीजी बोल उठी – यह साड़ी तो हमने पसंद कर रखी है, आप दूसरी पसंद कर लें।
चंदा ने शेष चारों को फिर देखा और पीली साड़ी की ओर इशारा किया।
जीजी – यह तो आपकी छोटी ननद ने पसंद कर रखा है।
चंदा ने फिर तीसरी साड़ी पसंद ज्योंहि किया, पुनः जीजी बोल उठी – यह साड़ी मां ने बड़ी मौसी को देने को सोच रखा है।
परिमल और चंदा को अब समझ आ चुका था, और दोनों ने पांचवी निम्न स्तर की ओर इशारा कर दिया। जीजी ने वह साड़ी का पैकेट चंदा के हांथों में थमाया और बोली – अच्छा किया आपने। चौथी बची साड़ी को छोटी मौसी पसंद कर चुकी है।
जीजी ने शेष चारों डब्बे को समेटा और कमरे के बाहर निकलकर ऐलान किया – चंदा भाभी ने अपनी पसंद की साड़ी ले ली है।

श्याम सुन्दर मोदी

शिक्षा - विज्ञान स्नातक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रबंधक के पद से अवकाश प्राप्त, जन्म तिथि - 03•05•1957, जन्म स्थल - मसनोडीह (कोडरमा जिला, झारखंड) वर्तमान निवास - गृह संख्या 509, शकुंत विहार, सुरेश नगर, हजारीबाग (झारखंड), दूरभाष संपर्क - 7739128243, 9431798905 कई लेख एवं कविताएँ बैंक की आंतरिक पत्रिकाओं एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित। अपने आसपास जो यथार्थ दिखा, उसे ही भाव रुप में लेखनी से उतारने की कोशिश किया। एक उपन्यास 'कलंकिनी' छपने हेतु तैयार