मैं आम इंसान हूँ
सादा जिंदगी,
दो वक्त की रोटी जुटा पाता हूँ
दिहाड़ी मजदूरी करता हूँ
परेशानियों से बोलवाला है
दिन में संघर्ष,
रात में आह भरता हूँ|
साहब,
सारे कामकाज ठप्प हो गये
मैं कहाँ जाऊँगा?
किस मोड़ पर भीख माँगूँगा
पैर पकडूँगा |
शायद मेरे घर का चूल्हा
अब नहीं जलेगा
माँ बाप, बीवी बच्चे
भूखे ही रह जाएंगे |
हे! भगवान दुर्भाग्य मेरा
कि मैं कुछ नहीं कर पा रहा,
हताश दुबका घर में
अपने आपको कोस रहा हूँ
ठीक वैसे ही
जैसे शिकारी से आहत हुआ पक्षी |
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