पर्यावरण

एक कदम पर्यावरण की ओर

सूनापान महसूस नहीं करती मैं

मैंने आंगन में खुशियां पाली हैं,

कुछ महकते फूल पौधे लगाए हैं

कुछ चहकते घोंसले सहेजे हैं।

जी हां, ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। वैसे भी हरी-भरी धरा, लहलाते खेत, पेड़ पौधे किसके मन को नहीं भाते…? बसंत ऋतु में पीत परिधान पहने सरसों के खेत, बुरांश, फ्योंली और वृक्ष शिखर पर शोभित पलाश के फूल अनायास ही सबका मन मोह लेते हैं। पेड़ पौधे ही क्या.. प्रकृति का हर पहलू मनोहारी है। कल कल बहते झरने, चांदी की सी चमक लिए घुमावदार रास्तों को नापती नदी, ये सभी प्रकृति के उपहार हैं और हमारे जीने का आधार है।

जून माह में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है लेकिन आधुनिकता के नाम पर असंख्य वृक्ष काटे जा रहे हैं। उनके स्थान पर कंक्रीटों के जंगल खड़े हो रहे हैं। कृषि योग्य भूमि का उपयोग आवासीय भूमि के तौर पर धड़ल्ले से होने लगा है। हर शहर की कमोबेश यही हालत है। संक्रमण के इस दौर में हवा और दवा की कीमत तो हम जान ही चुके हैं। यह सब हमें प्रकृति से मुफ्त में ही प्राप्त हो जाता है।आज छोटे-छोटे घर हो गए हैं। लेकिन गमलों में हम पर्यावरण को संवार सकते हैं। इन्हें बालकनी, कमरे या आंगन जहां भी स्थान मिले, रखा जा सकता है और आयुर्वेद में उपयोगी बताए गए पौधे जैसे गिलोय, पान, अश्वगंधा, तुलसी और पुदीना इनमें लगाकर हम अपने आसपास के वातावरण को शुद्ध रख सकते हैं। इसी तरह, मनी प्लांट, स्नेक प्लांट,  लिली, एलोवेरा, एरीका पाम, जरबेरा, रामा तुलसी व ऑरचिड आदि वनस्पतियों के पौधे लगाए जा सकते हैं जो प्रचुर मात्रा में आक्सीजन देते हैं और वातावरण को शुद्ध करते हैं। इन्हें कमरे में या घर के बाहर कहीं भी रखा जा सकता है। पेड़ पौधों का सानिध्य हमें अंतर्मन से खुशी प्रदान करता है। अपने जन्मदिन या किसी खास अवसर पर एक पौधा लगाकर और उसकी देखभाल का वचन लेकर हम पर्यावरण संरक्षण में अपना छोटा सा योगदान कर सकते हैं।

अमृता पांडे

अमृता पान्डे

मैं हल्द्वानी, नैनीताल ,उत्तराखंड की निवासी हूं। 20 वर्षों तक शिक्षण कार्य करने के उपरांत अब लेखन कार्य कर रही हूं।