लघुकथा

भविष्यवाणी

भविष्यवाणी
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खलिहान में दंवरी शुरू थी। हीरा और मोती लगातार पुआल पर गोल गोल चल रहे थे और उनके खुरों से कुचलकर पुआल से अनाज के दाने अलग हो रहे थे।  कठिन श्रम करते हुए सूखे पुआल को देखकर मोती की भूख बढ़ गई थी लेकिन वह मजबूर था। मालिक ने उनके मुँह को जालीदार ढक्कन से बंद कर रखा था।
उसकी मजबूरी को महसूस कर हीरा ने उसे आश्वासन दिया, ” मायूस न हो मोती ! भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं।  एक दिन वह भी आएगा जब सब कुछ रहकर भी इंसान को अपनी कारगुजारियों की वजह से खुद ही अपना मुँह इसी तरह बंद करने को मजबूर होना पड़ेगा, तब उसे अपनी गलती का अहसास होगा।”
आखिर हीरा की भविष्यवाणी सच साबित हुई और आज महामारी के दौर में गाँव में सभी इंसानों को मास्क लगाकर घूमते देख हीरा ने जोर से मोती से कहा, ” देखा ! मैं कहता था न , भगवान के घर देर है अंधेर नहीं !”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “भविष्यवाणी

  • चंचल जैन

    आदरणीय राजकुमार जी,सादर नमन। जैसी करनी वैसी भरनी। कहावत साकार हो रही हैं। जो बोया वही उग आया हैं। पंछी नील गगन में स्वछन्द भ्रमण कर रहे हैं और मानव मास्क पहनकर अपने ही घर में कैद हुआ हैं। बहुत सुन्दर लघुकथा। प्रकृति का पूजन करे,महामारी से निजात पाए।सादर 

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