कविता

कोई तो है

कोई तो है
जो मुझे रहनूमा सा
लगता है
मेरे राह के कांटे अपने
पलकों से उठाता है।
कोई तो है
जो दोस्त मुझे खुदा
सा लगता है
बहुत करीब है पर
जुदा सा लगता है।
कोई तो है
जो अपनी पारखी
नजरों से मेरी कीमत
समझता है
वरना  मिट्टी को
हीरा कौन कहता है।
कोई तो है
जो अपनी खुशी
मुझे दे जाता है
मेरे हिस्से का दुख
अपना लेता है।
कोई तो है
जो मुझे फर्श से अर्श पे
बैठा दिया
और खुद जमीं पे
रहकर निहारता है।
कोई तो है
जो मेरे करीब रहता
पर दिखाई नहीं देता है
तुझे क्या कहूँ मेरा
खुदा या रकीब है।
— लता नायर

लता नायर

वरिष्ठ कवयित्री व शिक्षिका सरगुजा-छ०ग०