लेखसामाजिक

हृदय भेदी………शब्द-बाण

संसार में तीन महान शक्तियों का विशेष सामर्थ्य है ये संसार का सृजन, पालन एवं विध्वंस करने वाली महान शक्तियां हैं । स्रष्टि निर्माता ब्रह्मा के ब्रम्हास्त्र का वर्णन पुरानों में आता है, नारायणास्त्र की महिमा भी सर्वविदित है और भगवान् पशुपतिशिव का पाशुपतास्त्र तो इतना प्रबल है कि क्षण मात्र में समूचे ब्रह्माण्ड का विध्वंस कर सकता है ।

परन्तु इन महान शस्त्रों का यदि कोई व्यक्ति नासमझी से संधान कर ले और फिर इसका प्रयोग न करना चाहे तो इनके संधान के बाद भी इन शस्त्रों को प्रणाम करके इन्हें वापस भी किया जा सकता है अथवा इनके तेज को लुप्त किया जा सकता है या इनकी दिशा परिवंर्तन करके इनके विनाशकारी परिणामों से बचा जा सकता है । इसके प्रमाण महाभारत और रामायण में मिलते हैं ।

लेकिन संसार में एक बाण ऐसा भी है जिसकी विनाशक एवं मारक क्षमता इन तीनों शस्त्रों से अधिक घातक है । यदि बुद्धिमत्ता पूर्वक इस शस्त्र का प्रयोग न किया जाए तो ये अत्यंत विनाशकारी सिद्ध होता हैं । यह तत्क्षण विनाश न भी करें तो भी इसका प्रभाव ख़त्म नहीं होता ये देर-सवेर अपना प्रभाव दिखाता ही है । इस शस्त्र की विशेषता ये भी है कि इसका कोई रूप रंग आकृति भी नहीं है जिव्हारूपी सारंग पर जब ये अभिराजित होकर लक्ष्य को भेदता है तो इसकी मारक क्षमता का अंदाजा लगाना भी संभव नहीं होता ।  इस शस्त्र का नाम है शब्द-बाण ।

जिस प्रकार भोजन सुपाच्य हो एवं ऐसा हो जिसे खाने में आनंद आए वही हितकर होता है । उसी प्रकार जब शब्द-बाण का संधान हो तो शब्द ऐसा हो जो सामने वाले को रस की अनुभूति न भी कराए तो कोई बात नहीं लेकिन उसके लिए पीढ़ादायक तो न हो संसार में शब्द ब्रह्म का बड़ा महत्व है । माधुर्यरस में पगे हुए शब्द जब किसी की ओर बढ़ाये जाते हैं तो उन शब्दों से सुनने वाले का मन मीठा हुए बिना नहीं रहता । प्रार्थना के शब्दों को जब भावों की चाशनी में डुबाया जाता है तो सृष्टि कर्ता भी प्रार्थी के सामने हाथ बांधकर खड़े हो जाते हैं ये मधुर शब्दों की विशेषता है ।

परन्तु इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ इस शस्त्र का अनुचित प्रयोग किया गया और फिर उसके अत्यधिक घातक परिणाम भी देखे गए इस परिप्रेक्ष्य में द्रौपदी एवं शिशुपाल का प्रसंग सर्वविदित है । ‘अंधे का पुत्र अंधा’ ये याज्ञसैनी(द्रौपदी) के वह शब्द थे जिनके कारण पांडवों को भीषण दुःख झेलना पड़ा, यक्तिगत अपमान का सामना करना पड़ा और इन्हीं के कारण भीषण नर संहार भी हुआ। इसी प्रकार शिशुपाल द्वारा प्रयोग किये गए शब्द उसकी मृत्यु का कारण बने ।

चूँकि शब्द को ब्रह्म कहा जाता है इसलिए अन्य शस्त्रों के साथ तो ईश्वर की शक्ति चलती है लेकिन शब्द ब्रह्म के साथ तो ब्रह्म(ईश्वर) स्वयं चलते हैं इसलिए जब हमारे हृदय में शब्द रुपी ब्रह्म की उत्पत्ति होती है तो ये केवल शब्द नहीं होते बल्कि इनमें विराजित ब्रह्म स्वयं लक्ष्य को भेदते हैं । वरना शब्द ही हैं जो किसी मरते हुए व्यक्ति को दो बोल सान्तवना और उत्साह के बोल देने मात्र से मृत्यु से बचा लेता हैं और वह भी शब्द ही होते हैं जो किसी के हृदय को विदीर्ण कर उसे मरणासन्न स्थिति तक भी ला सकते हैं । इसलिए शब्दों का प्रयोग बढ़ी सावधानी के साथ किया जाना चाहिए ।

जिस व्यक्ति के लिये कड़वे शब्द कहे जाते हैं चाहे वह व्यक्ति उस समय उनकी मार झेल भी जाए तो भी ये शब्द बाण उसके हृदय में गड़ा ही रहता है और उसे एक दर्द और चुभन का आभास कराता रहता है । समय आने पर ये उस विदीर्ण हृदय से निकल कर बड़ा विध्वंस करने में भी समर्थ हो जाता है । इसलिए महापुरुष सदैव उत्तम भावों से युक्त, श्रेष्ठ एवं मधुर शब्दों के प्रयोग पर बल देते हैं ।

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' लेखक, विचारक, लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार सम्पर्क:- 8824851984 सुन्दर नगर, कोटा (राज.)