इतिहास

शौर्य के शिखर महाराणा प्रताप और सौन्दर्य की धनी महारानी अजबदे

(महाराणा प्रताप जयंती पर विशेष)

एक सच्चे राजपूत, शूरवीर, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि के रखवाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदैव के लिए अमर हैं लेकिन क्या आप जानते हैं एक योद्धा का कठोर हृदय रखने वाले महाराणा का हृदय अपनी महारानी अजबदे के लिए प्रेम से भरा हुआ था। महाराणा प्रताप केवल एक योद्धा नहीं थे बल्कि उनके हृदय की वीरोचित कठोरता के बीच एक स्नेह सरोवर भी था जिसमें प्रेम हिलोरें लेता था।

प्रताप महारानी अजबदे से अत्यधिक प्रेम करते थे। प्रेम की पहली बयार ने प्रताप के मन को 17 वर्ष की आयु में ही अपनी खुशबू से महका दिया था। एक सखा की तरह अजबदे हमेशा पति के साथ खड़ी रही। अपनी सादगी और बुद्धि से उन्होंने सबका दिल जीता था। वह महाराणा प्रताप की सबसे वफादार साथी थी। उन्होंने एक सच्ची पत्नी और मित्र के रूप में सुख और दुख दोनों में साथ दिया। अजबदे अत्यधिक सुन्दर थी। सुंदरता के साथ वह कुशाग्र बुद्धि की भी धनी थीं। कई इतिहासकारों का मानना है कि विवाह से पहले ही दोनों एक-दूसरे को जानते थे। महाराणा प्रताप और अजबदे न केवल एक-दूसरे को प्रेम करते थे, बल्कि दोनों के बीच विश्वास और सम्मान का भी भाव था।

बताया जाता है कि दोनों पहले एक-दूसरे के अच्छे मित्र थे। अजबदे के रूप सौन्दर्य एवं लावण्य ने इस मित्रता को समय के साथ प्रेम में बदल दिया। विवाह के पहले ही दोनों के बीच इतना विश्वास था कि महाराणा प्रताप मेवाड़ साम्राज्य के बारे में कई गोपनीय सूचनाएँ अजबदे से साझा किया करते थे। अतुलनीय शौर्य के धनी महाराणा प्रताप और अतुलनीय सौन्दर्य की धनी अजबदे से इस हद तक प्रेम करने लगे थे कि उनके पिता महाराजा उदय सिंह ने 17 वर्ष की आयु में ही दोनों का विवाह कर दिया। महारानी अजबदे तब 15 वर्ष की ही थीं।

विवाह के बाद महारानी को कुछ समय के लिए अपने घर जाना था। उस समय का संवाद देखिये जो दोनों के एक दूसरे के प्रति प्रेम, लगाव, विश्वास और मित्रता के बंधन की निश्चलता को उजागर करता है – कुँवर और अजबदे का विवाह मेवाड़ के लिए ये एक महत्वपूर्ण घटना थी। तमाम बाधाओं के बावजूद बचपन के दो साथी कुँवर प्रताप और अजबदे विवाह बंधन में बंध ही गये। कुँवर प्रताप की माँ को तो जैसे आनंद का खजाना मिल गया था। जयवंताबाई ने खूब दान किया ब्राह्मणों का भोज किया उनके पास तो जैसे विश्राम करने का समय ही नहीं था। विवाह होने के बाद, कुँवर और अजबदे को कुल देवता एकलिंग जी के दरबार ले जाना फिर उनसे कुलदेवी माँ की पूजा करवाना, ब्राह्मणों को भोजन कराना और उदारता से दान करना न जाने कितने ही काम उन्हें करने थे।

इन सबके बीच कुँवर प्रताप और अजबदे सिर्फ एक दूसरे को देख पाते थे। उन्हें एक-दूसरे के साथ समय बिताने का मौका ही नहीं मिलता था। वे एक-दूसरे से बातें करना चाहते थे। लेकिन इस व्यस्त दिनचर्या में ये कहाँ संभव हो पाता जल्द ही वह दिन आ गया जब अजबदे को बिजोलिया के लिए प्रस्थान करना था।

कुँवर प्रताप को पता चला कि जब तक अजबदे युवा नहीं हो जातीं तब तक अजबदे को अपने मायके में रहना होगा। यह जानकर कुँवर उदास हो गये। उन्हें लगा जैसे उनका कोई बहुत अच्छा मित्र उनसे बिछड़ रहा है जिसे मिलना अब आसान नहीं होगा। वे सोचने लगे अब वे अपनी मन की बातें किससे करेंगे। इन सब विचारों में खोये कब दोपहर से शाम हो गई कुँवर को पता ही नहीं चला ।

यहाँ महल में अजबदे भी खुश नहीं थी। क्योंकि उनका मेवाड़ और शाही परिवार से अत्यधिक लगाव हो गया था। इन सबके अलावा, विशेषकर जब वह कुँवर प्रताप से बिछोह को याद करतीं तो सहसा ही अश्रुबिंदु उनके आँखों के सागर का अतिक्रमण करते हुए उनके कपोलों से धुलक जाते । जिस कुँवर से वह बेहद प्रेम करती हैं उनसे कैसे दूर रहेंगी ? इस विचार से उनका मुख उदासीन हो गया। हालँकि वह केवल 17 वर्ष की थी लेकिन कहीं न कहीं उन्हें प्रताप से अलग होने का दर्द महसूस हुआ वही दर्द जिसे कोई भी विवाहित जोड़ा महसूस करेगा।

उनका सारा सामान तैयार कर दिया गया था और वह जाने के लिए तैयार थी। तभी अचानक कुँवर आ गये और अजबदे का हाथ पकड़ कर उन्हें उसी बगीचे में ले गये जहाँ घंटों उनके साथ खेला करते थे बगीचे में अजबदे सहमी हुई खड़ी हैं और बड़े भोले भाव से कुँवर उनसे पूछते हैं….

कुँवर प्रताप- अजबदे यह सब क्या है ? आपको क्यों जाना है ? अब में अपने मन की बात किसके साथ करूँगा तुम्हीं तो मेरी सबसे अच्छी मित्रो हो ? अगर तुम मुझे भूल गयीं तो ? (कुँवर ने अनेकों प्रश्न एक साथ दाग दिए)

अजबदे (थोड़ा चुप रहकर बोलीं)- यह एक परंपरा है, कुँवरसा इसे निभाना ही होता है, और मैं आपको कैसे भूल जाऊँगी हम बचपन के मित्र हैं और अब तो…(ये कहती हुई चुप हो गयीं)।

(कुछ क्षण रूककर बोलीं) कुँवर आप जब भी मुझे मन से याद करेंगे सदैव अपने चरणों में बैठा पाएंगे । हम शरीर से अलग हो रहे हैं लेकिन अपने मन तो वही रहेंगे….. कहते हुए अजबदे ने अपनी आँखें झुकाली…..शायद उनमें अश्रुकण उभर आये थे ।

कुँवर प्रताप(व्याकुलता के साथ) – लेकिन अब हम कब मिलेंगे ?

अजबदे- हम जल्द ही मिलेंगे कुँवर सा मैं आपके चरणों की सेवा में जल्दी लौट आने के लिए ही जा रही हूँ उसके बाद हमारा पूरा जीवन हमारे सामने होगा ।
(कुँवर प्रताप अभी भी असंहज लग रहे थे। उन्होंने अपनी अँगुली से एक अंगूठी निकाली और फिर बोले)

प्रताप इसे मेरी स्मृति के रूप में रखो, अजब। यह आपको हर पल हमारे प्रेम की याद दिलाएगी।
अजबदे ने अपनी पलकें झुकाते हुए कोमलता से अंगूठी अपने हाथ में लेली और आँसू बहते रहे। दोनों एक दूसरे को कुछ क्षण देखते रहे। इससे पहले कि वह कुछ और कह पाते रानी वीरबाई आ गईं।

वीरबाई- अजबदे, अब आपके जाने का समय हो गया है। आइए।
(अजबदे ने घुटने टेके और कुँवर प्रताप के पैर छुए)
प्रताप (संकोच के साथ)- मुझे शर्मिंदा मत करो अजबदे। हम बराबर हैं। बस तुम अपना ध्यान रखना। अजबदे मुड़ीं और वीरबाई के साथ चल पड़ीं। (प्रताप स्तब्ध उन्हें देखते रहे)

उम्र में दोनों ही छोटे थे। उन्हें अपने अच्छे मित्र का साथ छूटने का दुःख भी था और डर भी। रानियाँ अजबदे को द्वार तक ले गईं। अजबदे ने उन सब का आशीर्वाद लिया। रानी जयवंताबाई ने अपनी लाडली अजबदे को गले से लगा लिया अजबदे भी उन्हें अपनी माँ मानती थीं।

जयवंताबाई (दुलारते हुए) – रो मत अजब याद रख, हम फिर से मिलेंगे और जल्द ही तुम फिर से ढेर सारी खुशियाँ लेकर वापस आओगी।

अजबदे अपनी भीगी पलकें लेकर भारी मन से पालकी में बैठ गयीं। पालकी का पर्दा हटाकर उन्होंने एक बार कुँवर के महल के झरोंखे को देखा वहाँ कुँवर उदास खड़े थे।
पालकी हिलने लगी, अजबदे और कुँवर प्रताप एक दूसरे की नजरों से वैसे ही ओझल हो गये जैसे सूर्य धीरे-धीरे अपनी रश्मियों को समेटता हुआ खो जाता है।

ऐसा था कुँवर और अजबदे का बाल्यवस्था से शुरू हुआ निश्छल प्रेम इतिहासकारों के अनुसार कुँवर ने राजनितिक कारणों से और भी विवाह किये थे। लेकिन उनका जो लगाव, जुड़ाव अंत समय तक महारानी अजबदे के साथ देखने को मिलता है वह अद्भुत है। कहा जाता है 1576 में हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद चोट लगने के कारण महारानी अजबदे का निधन हो गया। यह महाराणा प्रताप के लिए अत्यंद दुःखद घटना थी इस घटना ने महाराणा को मुगलों के विरुद्ध और ज्यादा क्रोध, घृणा और निर्दयता से भर दिया था।

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' लेखक, विचारक, लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार सम्पर्क:- 8824851984 सुन्दर नगर, कोटा (राज.)