कविता

एक अधूरा सफर

बड़े हौसले और उम्मीद के साथ
मैं अपना सफर शुरु किया था,
परंतु बढ़ते हर कदम के साथ
बाधाओं का पहाड़ जैसे
मुँह चिढ़ा रहा था।
पर मैं डरा नहीं, रुका नहीं
कँटीले, पथरीले रास्तों पर
चलते हुए भी कभी डिगा नहीं,
मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं
हौसले टूट रहे थे
सपने दम तोड़ रहे थे।
मंजिल करीब थी
उम्मीदें आसमान छू रही थीं,
परंतु आशंकाएं भी कम न थीं।
फिर भी मैं खुद को सँभाले
जैसे तैसे आगे बढ़ रहा था
पर थोड़ा थोड़ा डर भी रहा था,
मेरा सफर एक अधूरा सफर
न बन जाय ये भी सोच रहा था,
फिर भी मजबूत इरादे लिए
एक एक कदम आगे ही बढ़ रहा था।
आखिरकार मंजिल मिल ही गई
मेरी खुशियां आसमान छूने लगीं,
मेरा सफर एक अधूरा सफर
न बनकर रह जाये,
आशंका निर्मूल बन हो गई
मेरी मंजिल मेरे सफर पूर्णता की
कहानी,निशानी बन गई।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921