कवितापद्य साहित्य

पापा

ख़ुशियों में रफ़्तार है इक
सारे ग़म चलते रहे
तुम्हारे जाने के बाद भी
यह दुनिया चलती रही और हम चलते रहे
जीवन का बहुत लम्बा सफ़र तय कर चुके
एक उम्र में कई सदियों का सफ़र कर चुके
अब मम्मी भी न रही
तमाम पीड़ाओं से मुक्त हो गई
तुमसे ज़रूर मिली होगी
बिलख-बिलख कर रोई होगी
मम्मी ने मेरा हाल बताया होगा
ज़माने का व्यवहार सुनाया होगा
जाने के बाद तुम तो हमको भूल गए
जाने क्यों मेरे सपने से भी रूठ गए
बस एक बार आए फिर कभी न आए
न बुलाने के लिए कहकर चले गए
पर जानते हो पापा
एक सप्ताह पहले
तुम, मम्मी, दादी, मेरे सपने में आए
पापा, तुम मेरे सपने में फिर से मरे
मम्मी ने तुम्हारा दाह-संस्कार किया
पर तब भी जाने क्यों तुम हमको न दिखे
आग ने भी तुम्हारे नाम न लिखे
जैसे सच में मरने के बाद हम तुमको न देख सके थे
तुमसे लिपट कर रो न सके थे
जाने कैसा रहस्य है
मम्मी-दादी सपने में सदा साथ रहती है
पर मेरी परेशानियों के लिए कोई राह नहीं बताती है
किससे कुछ भी कहें पापा
तुम ही कुछ तो बताओ पापा
जानती हूँ हमसे भी अधिक भाग्यहीनों से संसार भरा है
दुनिया का दर्द शायद मेरे दर्द से भी बड़ा है
हमसे भी अधिक बहुतों की पीड़ा है
फिर भी मन की छटपटाहट कम नहीं होती
ज़ख्मों को तौलने की इच्छा नहीं होती
जीने की वज़ह नहीं मिलती
मन रोता है तड़पता है
दुःख में तुमको ही खोजता है
बस एक बार सपने में आकर
कुछ तो कह जाओ
न कहो एक बार बस दिख जाओ
जानती हूँ
समय चक्र का यही हिसाब-किताब है
हमको आज भी तुमसे उतना ही प्यार है
पापा, तुम्हारी बेटी को तुम्हारे एक सपने का इन्तिज़ार है।
– जेन्नी शबनम (18. 7. 2021)
(पापा की 43 वीं पुण्यतिथि पर)
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