बाल कविताबाल साहित्य

रसगुल्ला

गोल गोल रसगुल्ला,

स्वादिष्ट, बड़ा ही निराला।
मुंह में डालो,घुल जाए,
खाए,और खाते ही जाए।
प्यारे,चाशनी में घुले घुले,
दुलार में जैसे डुबे डूबे,
मुदुल,मुलायम, धवल,
कपास-से बिल्कुल नरम।
छोटू मोटू सब खाते,
मस्ती और मौज मनाते।
दादा-दादी,नाना-नानी
बिना दांत जी भर खा पाते।।
प्यारे बच्चो,निर्मल रहो,
रासगुल्ले-सा धवल चरित्र हो।
स्वभाव में कोमलता हो,
चाशनी-सी मिठास हो।
चंचल जैन

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८