गीत/नवगीत

महीना सावन का

महक गया है कोना -कोना
अब मन मंदिर के आँगन का
दिल की हर इक कली खिली
जो लगा महीना सावन का

हरियाली फैली है चहु दिश
फूलों में उन्माद भरा है
धरा निखरकर यूँ शरमाई
ज्यों दुल्हन को रूप चढ़ा है
मोर पपीहे कूंक रहे है
जो समा हुआ मनभावन सा
दिल की हर इक कली खिली
जो लगा महीना सावन का

घूम रही हैं सभी गुजरिया
पहन – पहनकर हरे घाघरे
लोकगीत गूँजे है चहु दिश
झूलों से भर गये बाग रे
कुछ बूँदे जो पड़ी धरा पर
घर आँगन लगता पावन सा
दिल की हर इक कली खिली
जो लगा महीना सावन का

रिमझिम-रिमझिम बरखा से ही
मौसम का अलग अन्दाज़ हुआ
माटी की सोंन्धी ख़ुशबू से
महका -महका हर साज़ हुआ
ये मन मयूर छम-छम नाचा
बस झूम उठा बंजारन सा
दिल की हर इक कली खिली
जो लगा महीना सावन का।।

— अनामिका लेखिका

अनामिका लेखिका

जन्मतिथि - 19/12/81, शिक्षा - हिंदी से स्नातक, निवास स्थान - जिला बुलंदशहर ( उत्तर प्रदेश), लेखन विधा - कविता, गीत, लेख, साहित्यिक यात्रा - नवोदित रचनाकार, प्रकाशित - युग जागरण,चॉइस टाइम आदि दैनिक पत्रो में प्रकाशित अनेक कविताएं, और लॉक डाउन से संबंधित लेख, और नवतरंग और शालिनी ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित कविताएं। अपनी ही कविताओं का नियमित काव्यपाठ अपने यूटयूब चैनल अनामिका के सुर पर।, ईमेल - anamikalekhika@gmail.com