हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – हमें किसी का डर नहीं

वे जमाने चले गए ,जब हम डर -डर कर जीते थे।अब हम पूरी तरह से निडर हो गए हैं। अब हमें पाप से डर है ,न पुण्य की चिंता।जो करते हैं ,मन की करते हैं। हमें क्या?कोई जिए या मरे! हम तो अपने और अपनों के लिए ही सब कुछ कर्म करते हैं। क्या सुकर्म, क्या कुकर्म, क्या अकर्म – इसकी चिंता पूरी तरह छोड़ ही दी है। सुना है पहले के माँ-बाप अपनी संतान के भविष्य की चिंता में दिन – रात एक किए रहते थे,किन्तु हमारे मम्मी-डैडी कितने अच्छे हैं कि उन्होंने सब कुछ हमारे ऊपर ही छोड़ दिया है। कोई छोटी – सी गलती हो जाने पर देह की खाल तक छील दी जाती थी। बहुत मार पड़ती थी। अब हम कुछ भी करें ,न कोई रोकने वाला है , न टोकने वाला।हम पूरी तरह निडर हैं।

अब ज्ञान कौड़ियों के मोल बिकता है। कीमत अंकों की है ,प्रमाणपत्र या डिग्री की है, योग्यता को कौन पूछता है। जुगाड़ का युग है । कम्पटीशन में जुगाड़ लगाकर लोग डाक्टर ,इंजीनियर ,वकील,औऱ न जाने क्या- क्या बन जाते हैं। अब तो सुना है कि प्रोफ़ेसर भी जुगाड़ से बनने लगे हैं । प्राईमरी के सैकड़ों टीचर बी .एड. की नकली डिग्रियों से बन गए औऱ निडर होकर ही तो बने। लाखों कमाकर कोठियों में ऐश  कर रहे हैं। ये अलग बात है कि जाँच के डंडे ने सही रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर दिया है। ये सब उनकी निडरता का ही परिणाम तो है। यहाँ पर तनिक गहराई में उतरने की आवश्यकता है। जिन -जिन निर्माताओं ने स्वयं कुलपति रजिस्ट्रार बनकर डिग्रियां जारी की होंगीं ,वे भी तो निडर ही थे। कितने बोर्ड हैं जो शत-प्रतिशत अंक देकर छात्रों का भविष्य उज्ज्वल कराने में   जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं।भले ही उन्हें अपना नाम औऱ पता भी ठीक से लिखना नहीं आता हो। ये निडरता की पराकाष्ठा ही तो है।नियम ,कानून, नैतिकता सब कुछ खूंटी पर टाँगकर छोड़ दिया गया है। धन्य मेरे महान देश औऱ उसके महान नागरिक!

अब पढ़ाई को ही ले लीजिए। परीक्षा में वे कभी नहीं कहते कि नकल मत करना।बल्कि कुछ मम्मियाँ और डैडी लोग तो न केवल गुरू जी से यह कहते देखे जाते हैं ,सर आज बच्चे की परीक्षा है , ध्यान रखना। इस ‘ध्यान रखने’ के मतलब बहुत गहरे हैं।आप सब समझते हैं। ज़्यादा खोलकर क्या -क्या कहा जाए! कुछ मम्मी -डैडी तो रात – रात भर मेहनत करके हमारी नकल सामग्री उतारते हैं,ताकि हम कक्ष -निरीक्षक की आँख में धूल झोंक कर अपना काम शांति से कर सकें।हमारे उन गुरुजनों का तो कहना ही क्या ! जो खुद आँख बचाकर परीक्षा हॉल से किसी भी बहाने से पलायन कर जाते हैं। उन्हें भी किसी का डर नहीं । जब उन्हें नहीं ,तो हमें ही क्यों हो? वे आख़िर हमारे भविष्य निर्माता हैं। वे सी. सी. टी. वी . कैमरे के नीचे खड़े होकर बोल – बोल कर पूरी मदद करते हैं।उधर हमारे पूज्य हितैषी मम्मी -डैडी की बात का भी तो ध्यान रखना है ,वरना वे राह चलते न तो उन्हें नमस्ते करेंगे औऱ नहीं चाय की दावत पर बुलाएंगे। अब तो हमारा इतना साहस बढ़ गया है कि सीना तानकर, कुर्सी पर कट्टा लेकर ठाठ से बैठेते हैं। कभी कभी तो कुछ ज़्यादा आदर्शवादी टीचर ऐसे आ जाते हैं कि गर्दन भी नहीं घुमाने देते । उनकी गर्दन का इंतज़ाम भी हमें करके घर से ही चलना पड़ता है। परीक्षा की पूरी तैयारी होनी चाहिए न! आख़िर परीक्षा तो परीक्षा है न!!

अब जमाना कितना बदल गया है कि हमें या किसी को पुलिस का भी डर नहीं रहा। आप आए दिन टीवी अखबारों ,सोशल मीडिया पर देखते हैं कि चालान करने, हेलमेट या मास्क नहीं लगाने पर रोकने पर बिना आवश्यक कागज़ात रखने पर रोकने – टोकने पर पुलिस को भी पीट दिया जाता है। जब आम आदमी की ये दशा है तो चोर,उच्चके, गिरहकट, राहजन और डाकू सब निडर हो ही जायेंगे। बैंकों में दिन दहाड़े डकैतियाँ इसी निडरता के कारण ही तो हो रही हैं। कुछ ऐसी भी घटनाएं हुई हैं जहां स्वयं बैंक मैनेजर ही बैंक में डाका डालते हुए पकड़े गए हैं।

आज का युग है कि आदमी केवल क़ानून की बात तो बड़ी लंबी चौड़ी करता है, परन्तु उसका पालन कदापि नहीं करना चाहता। हम सब क़ानून का उल्लंघन करना अपनी शान समझते हैं। विशेष रूप से जो ऊँचे पदों पर आसीन हैं, यदि उन्होंने क़ानून का पालन भूल से भी कर लिया, तो समझिए उनकी नाक ही कट गई! वे अपने को क़ानून की परिधि से बाहर का मानकर चलते हैं। निर्भय होकर रिश्वत लेना, ग़बन करना, अपहरण करना आम हो गया है। आज के युग में डरपोक आदमी सही और सुरक्षित तरीके से जी नहीं सकता।

देश के धर्म के ठेकेदार पूर्णतः निर्भय होकर राजाओं जैसी विलासिता पूर्ण जिंदगी का भोग कर रहे हैं। कुछ कारागारों की शोभा बढ़ा रहे हैं ,तो कुछ अभी परदे में क्या कर रहे हैं, ये परमात्मा जानता होगा ये वे स्वयं। अकूत धन -दौलत, नव यौवनाओं का अहर्निश साथ, रहस्य पूर्ण महलों का निवास , अंधी जनता का अंधा विश्वास इन्हें निडर बनाने में आग में घृत का काम कर रहा है।

राजनीति की बात करना ही व्यर्थ ही है ,क्योंकि यही तो वह जड़ी -बूटी है, जिसे सूँघने मात्र से चार बोतल का नशा हो जाता है, जो एक बार चढ़ जाने कर बाद उतारने पर भी नहीं उतरता। यह समाज, धर्म, शिक्षा, शिक्षालय, शिक्षक, क़ानून, मनुष्य मात्र(कुछ डरपोकों को छोड़कर),नीति, नैतिकता, साधु,संत, भिक्षा, ठेकेदारी, नौकरी, नर-नारी, विद्यार्थी सबमें व्याप्त है। कुर्सी हथियाने के आधुनिक डिजिटल हथकंडे सियासत की निडरता के पुष्ट प्रमाण हैं। अब ईमानदारी औऱ सचाई से काम नहीं चलता। इसलिए साम,दाम, दंड और भेद :जैसे भी सम्भव हो सत्ता अपने पास ही होनी चाहिए। अब तो एक ही नारा है कि ‘अब तक ,पाँच ,पचास वर्षों में आपने किया ,उसे करने का अधिकार अब हमारा है।अब औऱ भी निडर होकर हम करेंगे। तुम्हारी तरह नहीं डरेंगे।’

मेरा देश पहले से ही महान था, अब तो हम औऱ भी निडर होकर उसे महान बनाने के लिए कटिबद्ध ,वचनबद्ध और दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। पाप पुण्य कुछ भी नहीं होता।इसलिए निडर होकर अपना उल्लू सीधा करना हम सबका मन्तव्य है,और होना भी चाहिए , जो आज सारे वतावरण , दर-दर, घर -घर ,गली -गली, गाँव -गाँव , नगर -नगर औऱ सम्पूर्ण देश में व्याप्त है। किसी न किसी रूप में उसकी महक सबके ही नथुनों में रस- बस गई है। हमारा एक ही नारा है:

निडर रहो, कुछ भी करो।

ज़रूरत पड़े ,तो मारो मरो।।

हर हाल में अपना घर भरो।

कोई तरे या नहीं,तुम तो तरो।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040