राजनीति

क्या वाकई में आज हम स्वतंत्र हैं?

सभी  देशवासियों को 75 वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक हार्दिक बधाई और शुभकामनाएंँ!

भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है ‘स्वतंत्र’ शब्द सुनने मात्र से ही हमारे मन में खुशी का आभास होने लगता है, क्योंकि हमें  स्वतंत्रता का महत्व पता है, हमारा देश इतने सालों से परतंत्र की बेड़ियों मैं जकड़े हुए था जिसे अनेक बलिदानों के द्वारा स्वतंत्र कराया गया। परंतु आज फिर से यह प्रश्न मेरे जेहन में है कि क्या वाकई में आज हम एक स्वतंत्र राष्ट्र मैं जी रहे हैं ? यह प्रश्न मेरे जेहन में इसलिए आया क्योंकि स्वतंत्र का अर्थ और मायने भारत देश बहुत अच्छे से समझता है।
भारत की स्वतंत्रता से क्या तात्पर्य है पहले वह जानते हैं
भारत की स्वतंत्रता से तात्पर्य ब्रिटिश शासन द्वारा 15 अगस्त 1947 को भारत की सत्ता का हस्तांतरण भारत की जनता के प्रतिनिधियों को किए जाने से है। इस दिन दिल्ली के लाल किले पर भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर स्वाधीनता का ऐलान किया किया था।
स्वतंत्रता का अर्थ यह कतई नहीं है कि हम स्वच्छंद होकर अपनी मनमानी  करें। अपनी मर्यादा को भूलकर सरेआम अनैतिक कृत्य किए जाएं।

कहने को तो आज भी हम स्वतंत्र देश में ही निवास कर रहे हैं खुले विचार कुछ मौलिक अधिकार जिनका  प्रत्येक नागरिक प्रयोग करते हुए अपनी जीवन यापन चला रहा है लेकिन यदि हम इस विषय पर चिंतन करें तो एक यह एक भ्रम मात्र है और हमारे आसपास का वातावरण और नजारा भी बहुत अलग है।
यकीनन आप सभी को मेरी बातें कटुता पूर्ण लग रही होंगी? किंतु यहां आज की सत्यता है । जहां आज हम अपना 75 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारियां कर रहे हैं वही आज भी हमारा देश  परतंत्र बेडियों से जकड़ा हुआ है आज भी हम पूर्ण रुप से स्वतंत्र नहीं है। आज हम कहने और सुनने के लिए तो स्वतंत्र शब्द का प्रयोग कर रहे हैं कि हम एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं परंतु क्या हम वाकई में एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं ? यह प्रश्न आप स्वयं अपने आप से कीजिए।और इस पर विचार नहीं चिंतन कीजिए।
कुछ समय पहले तक हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों से अपने राष्ट्र को स्वतंत्र कराया, और उसमे सफलता प्राप्त करके हमने अपने भारत देश को स्वतंत्र भी बनाया था परंतु आज हम अपने ही देश में अपने ही देश के लोगों के बीच अपने आप को स्वतंत्र नहीं कर पा रहे हैं यदि हम बात करें देश की, समाज की, राजनीति की यहां तक कि अपने रिश्तेदारों की, तब भी पाएंगे कि सही मायने में हम स्वतंत्र  हुए ही नहीं हैं ।
हमारे राष्ट्र के पास कई ऐसी समस्याएं है जो बेडियां की भांति अपना कार्य कर रही हैं। जो हमारे स्वतंत्र भारत कि नीवं को कमजोर कर उन्हें धीरे-धीरे परतंत्र की ओर ले जा रही है जिस पर विचार किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

1.स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण बेटियों की दृष्टि से:-
यदि बात करें अपने देश की बेटियों की तो आज कितनी बेटियां इस देश में स्वतंत्रता पूर्वक अपना जीवन यापन  कर रही है ,अब आप कहेंगे कि उन्हें पूर्ण आजादी है नौकरी करने की, अपनी आजादी से कहीं पर भी आने जाने की, अपने मनपसंद के लड़के से शादी करने के लिए, लेकिन यह बात आप और में स्यवं अच्छे से जानते हैं कि वह क्या वाकई में स्वतंत्र  है ? आज भी ग्रामीण इलाकों और पढ़े लिखे समाज की लड़कियां आज भी शाम 7 बजे के बाद बाहर नहीं निकल सकती , कारण अपने ही देश के वो नौजवान युवक जो सड़कों पर उन्हें बुरी दृष्टि से देखते हैं, उन्हें उपभोग की वस्तु समझते हैं ऐसे में क्या आप यह कह सकते हैं कि वाकई में हमारा राष्ट्र लड़कियों को पूर्ण स्वतंत्रता दे पाया है क्या आज भी उन्हें उतनी ही स्वतंत्रता है जितनी कि हमारा समाज लड़कों को देता है नहीं समान्य तौर से में इस बात से सहमत नहीं हूंँ। आज भी ना जाने कितनी बहू बेटियांँ दहेज लोभियों के हाथों की बलि चढ़ाई गई।
इसका  समाधान भी हमें ही निकालना है और मुझे ऐसा लगता है कि यदि हम जितनी समझाइश बेटियों को देते हैं उनके भविष्य निर्माण के लिए उसने अधिक जिम्मेदारी हम अपने घर के बेटों को दे ताकि वह बेटियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे ,तो शायद प्रत्येक घर में से एक जिम्मेदार बेटा इस देश को मिलेगा और देश के एक जिम्मेदार नागरिक उन सभी बेटियों को मिलेगा जो उन्हें सुरक्षा की दृष्टि से देखें। ना कि मौके या उपभोग  की दृष्टि से!

2. युवा वर्ग के भविष्य का निर्माण की दृष्टि से:-
कहा जाता है कि युवा वर्ग एक राष्ट्र की रीढ़ की हड्डी होते हैं क्योंकि शिक्षा के उपरांत युवा वर्ग आर्थिक दृष्टि से अपने आप को सक्षम बनाता है जिसके लिए वह नौकरी की तलाश में रहता है किंतु लगभग कई वर्षों से सरकारी नौकरी प्राप्त करना एक स्वप्न मात्र बनकर रह गए या फिर यह कह लिजिये कि  आज शिक्षा की कोई महत्वपूर्णता ही नहीं रही हर वर्ष करोड़ों युवा वर्ग शिक्षा प्राप्त कर बेरोजगार घूम रहे हैं क्या इनके लिए शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है कि इन्हें नौकरियां उपलब्ध कराई जाए क्या  हमारा देश आप निर्भर भारत का निर्माण बेरोजगारी के साथ करेगा इसके समाधान में केवल इतना ही कहूंगी कि यदि शासन चाहे तो युवा वर्ग को उनकी शिक्षा के अनुसार उन्हें रोजगार प्रदान करने में सहायक भूमिका निभा सकता है साथ ही साथ कुछ ऐसे स्वरोजगार  की योजना चलाएं जिनमें युवा वर्ग के आर्थिक दृष्टि से मजबूत बन सके और देश की अर्थव्यवस्था में अपना सहयोग कर सकें जहां हम छोटी से छोटी चीज पर चीन पर आश्रित रहते हैं वही वस्तुओं का उत्पादन कम से कम लागत में अपने भारत देश में उत्पादन हो सके जिससे युवा वर्ग को नौकरी के अवसर प्रधान होंगे और देश आर्थिक रूप से मजबूत और संपन्न बनेगा।

3. सांप्रदायिकता की दृष्टि से:-
हमारे देश में विभिन्न संप्रदाय, जाति ,धर्म वर्ग के लोग निवास करते हैं और तब भी हम अपने देश मैं अनेकता में भी एकता होने का दावा करते हैं क्या वाकई में ऐसा होता है आज हमने अपने देश को ना जाने कितने खंडों में विभाजित कर दिया है। कभी जाति के नाम पर ,कभी आरक्षण के नाम पर ,कभी असामाजिक तत्व के नाम पर ,कभी दंगों के नाम पर, कभी एक दूसरे पर इल्जाम लगाने से भी हम बाज नहीं आते हैं में पूछना चाहती हूं देश के उन सभी नेताओं तथा राजनेताओं से जुड़े कुर्सी मात्र के लिए अपने जिम्मेदारियों से दूर हो गए क्या कभी उन्होंने यह सोचा है कि पद पर आने से पहले आम जनता को क्या भरोसा दिलाया था? और अब आप क्या कर रहे हैं ?आपने तो देश के इतने टुकड़े कर दिए हैं आज देश का हर एक नागरिक अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहा है क्योंकि उसका शोषण किया जा रहा है कितने दंगे फसाद हमारे देश में आज भी नए नए मुद्दों पर होते हैं जो हमारे देश की नींव को खोखला कर रहे हैं देश खुद ही जाति, धर्म ,संप्रदाय इनमें ही उलझा हुआ है ।तो फिर हमारा देश विकासशील कैसे हुआ कैसे हमारा देश स्वतंत्र है स्वतंत्र राष्ट्र की नियुक्ति एकता के साथ होती है सफलता के साथ होती है तब हम कह सकते हैं कि हमारा देश विकसित देश है परंतु आजादी के इतने साल भी हम अपने देश को विकासशील देश ही मानते आए हैं पर यह विकासिता कब तक  देश कब तक विकास करें कब हम कहेगे कि अपने राष्ट्र पर हमारा देश विकसित राष्ट्र है।
यदि इस राष्ट्र का प्रत्येक निवासी अपने कर्तव्य को समझते हुए इमानदारी पूर्वक अपना कार्य करें तो शायद आज भी वह दिन दूर नहीं जब हम अपने विकासशील देश को विकसित राष्ट्र कह सकें और जिस भ्रम में हम जी रहे हैं कि आज हम स्वतंत्र देश के निवासी हैं उसे हम बिना किसी संकोच के कह सके कि हां हम स्वतंत्र देश के निवासी है। हम राजनीति के बदले राष्ट्र नीति की सोच रखें ,हम निजी स्वार्थ की ना सोचते हुए आर्थिक विकास के सोचें ,तब  शायद वह दिन दूर नहीं जब हम कह सके कि हां हम स्वतंत्र राष्ट्र में निवास करते हैं।
तभी स्वतंत्रता का असली आनंद उठाया जा सकता है। और फिर तब हम गर्व से कह सकेंगे कि ‘हम भारतीय होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी हैं।’

— डॉ.सारिका ठाकुर “जागृति”

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)