इतिहास

अरूण कुमार काम ही पहचान : अनाथ बेटियों को सुकन्या योजना का उपहार

बिहार के औरंगाबाद जिले के दाऊदनगर प्रखंड के भखरूआं मोड़ निवासी रामचंद्र यादव के पुत्र अरूण कुमार एक ऐसे सर्व साधारण नौजवान का नाम है जो अपने काम (काम नहीं सेवा कहना ठीक होगा) से पहचाने जाते हैं।वैसे तो एक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं पर जहां तक मेरी जानकारी है किसी पद पर कभी निर्वाचित नहीं हुए। अगर साफ साफ कहें तो चुनाव ही नहीं लड़े।फिर भी जनता की सेवा में ऐसे तत्पर रहते हैं जैसे कोई फरिश्ता एक समान इंसान के रूप में अपने आसपास के लोगों के घर-घर के बेटा हो।जब भी कोई इन्हें चाहे वह जान पहचान का हो या अनजान हो याद करता है तो अपवाद या यूं कहें कोई विशेष मजबूरी नहीं हो तो ये हर समय सेवा में तत्पर रहते हैं।आप इनसे जितना उम्मीद रखते हैं उससे बढ़कर ये आपके साथ हंसी ख़ुशी में भले नहीं रहें पर दुःख दर्द में जरूर होंगे।वह भी तन-मन और धन से।
इनको इस उदाहरण से समझने की कोशिश किजिए ….आप सभी जानते हैं पिछले दो वर्षों से महामारी से कितने घर वीरान हो गये,कितनी मां बहनों का मांग उजड़ गया, कितने बच्चे अनाथ हो गए जिसकी जिम्मेवारी लेने से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर केन्द्र सरकार हाथ खड़ा कर दी। बहुत से लोग महामारी को मौका के रूप में,कोई पहचान के लिए, कोई नाम के लिए ,कोई रसूख के लिए ,कोई पद के लिए ,कोई जीत के लिए दिखावा कर रहा था,कोई भाड़े के लोगों द्वारा सेवा का दंभ भरने की नाकाम कोशिश कर रहा था।
लेकिन इन सबसे बिल्कुल अलग सेवा को अपना कर्त्तव्य माननेवाला एक कर्म योगी इंसान था वह कभी अग्नि पीड़ित, कभी कोई बीमारी पीडित,कभी ठनका पीड़ित,कभी सर्पदंश पीड़ित,कभी गरीबी पीड़ित,कभी लाकडाऊन पीड़ित,कभी शासन उत्पीड़न के शिकार, कभी समाजिक उत्पीडन के शिकार, कभी परिवारिक उत्पीड़न के शिकार लोगों के आंसू पोंछने के लिए उनके दरवाजे-दरवाजे, कोर्ट,कचहरी, पुलिस,वकील, दरोगा, एसपी,डीएम, डॉक्टर,अस्पताल दौड़ता रहा। इसमें कभी उनका कोई साथी साथ छोड़ देता।कभी कोई उनपर कीचड़ भी उछालने की कोशिश करता।पर बिना इन बातों की प्रवाह किये अपने सेवा कर्म में कोई कमी नहीं रहने देने की भरपूर कोशिश जारी रखा।
इसी बीच पहले अपनी सगी बहन के मांग उजड़ गया। फिर वह बहन भी कैंसर के चपेट में आ गई।उसके इलाज के लिए घर अस्पताल को एक पर दिया।घर और खुद को समय नहीं देने से तंग आकर घरवाले भी नराज हो गए पर वह इंसान अपने पांव पर विस्वास रखकर अपने कर्मपथ पर अविचल रहा।पर दुख की बात अपनी बहन को वह बचा नहीं सका।एक ओर बहन की चिता की आग धधक रही थी दुसरी ओर वह इंसान उन बहनों के सहारा बनने की कोशिश कर रहा था जो कुछ दिन पहले अपने जीवन साथी को खो दी थी।उस इंसान ने उनके बेटियों के भविष्य संवारने का जिम्मा अपने कांधे पर लिया। उसके लिए बैंक से सुकन्या समृद्धि योजना के फार्म लेकर उन बेटियों के घर पहुंच गया।उस इंसान के बहन बहनोई के गुजरने की खबर सभी को मालूम था यह जानकर वे परिवार उन्हें अभी यह नहीं करने के लिए मना करने लगे। लेकिन आप जानकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे सेवा को कर्म माननेवाला वह साधारण व्यक्ति ने हाथ जोड़कर उन परिवारों से क्या कहा। उसने कहा कृप्या कर आपलोग हमें अपने कर्तव्य पालन करने से न रोकें। अगर आप ऐसा करते हैं तो यह मेरे साथ अन्याय होगा। हमें इन बेटियों के चेहरे पर मुस्कराहट लाने के लिए यह छोटा सा उपहार स्वीकार कर लिजिए। अपनी बहन के भोज के दूसरे दिन उन प्रभावित बेटियों के हाथ में सुकन्या समृद्धि योजना के पासबुक जो चार चार हज़ार रुपए के साथ खोला गया था उनके दरवाजे पर पहुंचकर भेंट किया।यह भेंट इस पोस्ट के लेखक के घर के अभागिन बहन की बेटी को भी मिला।
वैसे औरंगाबाद जिले और इसके आसपास के जिलों में अरूण कुमार राजद यानी राष्ट्रीय जनता दल रक्तदाता समुह संचालन करने के लिए जाना पहचाना नाम है।इनके पास रक्तदान करने वाले लोगों के नाम का एक लम्बा फेरहिस्त है जो जरूरत पड़ने पर सिर्फ औरंगाबाद नहीं बिहार के बाहर भी बाहर भी रक्तदान करने के लिए तुरंत तैयार हो जातें हैं।खुद अरूण कुमार लगभग दो दर्जन बार रक्तदान कर चुके हैं।इनका समूह हजार से ऊपर बार यह पुण्य कार्य कर चुकी है।अरूण कुमार गरीबों के मसीहा के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान रखने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव जी को अपना आदर्श मानते हैं।
सुकन्या समृद्धि योजना को अनाथ बेटियों को उपहार में देने के पीछे एक दिलचस्प घटना है।हुआ यूं कि दूसरे लाकडाऊन में एक दिन स्थानीय विधायक की ओर से गांवों में मुफ्त दवा और भोजन का वितरण अरूण कुमार और उनके साथी कर रहे थे। मैं भी उस दिन उनके नेक कार्य का हिस्सा था।जब वितरण का कार्य कर हमलोग लौट रहे थे तो दवा वितरण में सहायक कर रहे गांव के नौजवान ने अपने गांव की एक बहन के पति के अकस्मात दुर्घटना बस हुए मृत्यु के बारे में बताया और कहा उसने सभी जनप्रतिनिधियों सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को सूचित किया पर कोई सुध तक लेने नहीं आया।हमलोग पीड़ित बहन के पास पहुंच कर उसे ढांढस बंधाया और हर संभव मदद का भरोसा दिलाया।इस बात को सभी लोग भूल गए खुद मैं भी। कारण मैं भी मात्र बत्तीस साल के बहनोई के आक्सीजन के अभाव में खोने के कारण अंदर से बहुत परेशान होने के बावजूद अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करने का प्रयास कर रहा था।पर यह बात अरूण कुमार नहीं भूले एक दिन जब सुकन्या समृद्धि योजना के तहत बेटियों का खाता खोलने के लिए फार्म लिए घर पहुंचने पर मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ हुआ।साथ ही एक सुखद एहसास भी की अभी भी कुछ एक लोग हैं जो दूसरे के संवेदना का ख्याल रखना जानते हैं।
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम

गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम

शिक्षक और सामाजिक चिंतक देवदत्तपुर पोस्ट एकौनी दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार पिन 824113 मो 9507341433