कविता

संबंधों का क्या कहना

संबंधों का क्या कहना
यह तो जीवन का गहना
रखना सदा इनको संभाल के
यही तो हैं पन्ने किताब के ।

खुशी भी इनके बिन रहती अधूरी
जैसे मन की मुराद न हुई हो पूरी
गम में तो रिश्तों का
महत्व ही अलग है
अपने जो पास हैं तो
हौंसले बुलंद हैं ।

मित्रता हो या हो रिश्तेदारी
इनको निभाने में ही समझदारी
मुश्किल वक्त में ये ही काम आते
मन का बोझ हल्का कर जाते ।

सच्चे रिश्ते जल्दी साथ न छोड़ें
विपदाओं में जल्दी मुंह ना मोड़ें
चेहरों पर खिलती मुस्कानें ये लाते
गम में खुशियों के राग बिखराते ।

आसपास के लोग सदा
होते हितकारी
त्वरित मदद मिलती इनसे
रहो उनके उपकारी
करें मदद हम भी उनकी
जितना खुद से बन पाए
संबंधों का मान करें
और उनके काम आएं ।

लालच छल अभिमान दिखावा
रिश्तों को करते कमजोर
थोड़ा झुकना सत्य पर चलना
गहराते रिश्ते पुरजोर ।

संबंधों की डोर न टूटे
तो अच्छा है
यारों का संग साथ ना छूटे
तो अच्छा है
स्वाभिमान पर लेकिन
कोई चोट करे तो
ऐसे संबंधों का
मिट जाना अच्छा है ।

ईश्वर से संबंध
सदा ही बना के रखो
सत्य और निष्ठा के
दीप जला कर रखो
आत्मा और परमात्मा के
संबंध को जानो
आजको जिओ और
आज के पल को ही सत्य मानो ।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई