कविता

शोभन प्रभात

भानु उदित देता संदेशा, नव प्रभात – नव युग की आशा
संयम-निर्मल चिंतन धारा, गंगा ले बहती है माला
वसुंधरा निज देह सलोना, सजा लेती पहने वनमाला
इंद्रधनुष रंगत फूलों का, सौरभ मोहित करता बहता
ऊपर से लहरें तो मारता, मोती अंदर छुपाके रखता
श्वेत वस्त्र से जलधि तरंगा, सज-धजकर नखरे दिखलाता
सरिता बहती लेकर शोभा, स्वर्ण-वर्ण मीनों का वासा
कमल-कुमुद सुंदर सतरंगा, पोखरों में खिल उठते ज़ारा
वन का मृग-दल चरता-फिरता, आज़ादी को इंगित करता
नभचर पर फैलाके लगाता, चक्कर, गाकर गीत अनोखा
देखके मनमोहन यह नज़ारा, शिथिल भाव फिर किसे लगेगा
जागो सब निद्रा से अनिष्टा, तीसरी आँख से निहार नयना

_ कलणि वि. पनागाॅड

कलणि वि. पनागॉड

B.A. in Hindi (SP) (USJP-Sri Lanka), PG Dip. in Hindi (KHS-Agra) श्री लंका में जन्मे सिंहली मातृभाषा भाषी एक आधुनिक कवयित्री है, जिसे अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा से भी बहुत लगाव है। श्री लंका के श्री जयवर्धनपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विशेषवेदी उपाधि प्राप्त की उसने केंद्रीय हिंदी संस्थान-आगरा से हिंदी स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी पा ली है। वह श्री लंका में हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करने की कोशिश करती रहती है।