सामाजिक

कन्या भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध है,डॉ.सारिका ठाकुर

“बेटा-बेटी में समानता की आओ घर घर मे अलख जगाए
हर बहु को बेटी मानने की सास-ससुर को राह दिखाए”

दोस्तो, जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि सम्पूर्ण भारतीय राष्ट्र की महिलाओं तथा बच्चियों की आत्मसुरक्षा के लिए निरंतर हमारा शासन और हम सब अपने सार्थक प्रयासों के द्वारा अनेक प्रशिक्षण शिविर आयोजित कराये जाते है,फिर भी हमारे समाज के कुछ ऐसे ज्वलंत सामाजिक मुद्दे है जो आज भी हमारी देश के विकास में बाधा डाल रहे हैं।आज के समय में ऐसा ही एक ज्वलंत मुद्दा है ।
माँ के गर्भ में कन्या भूण हत्या का…???

जी हां दोस्तों, कन्या भ्रूण हत्या का सीधा सीधा प्रभाव माता के हृदय पर पड़ता है जब एक बच्चा माता के गर्भ में जन्म लेता है तो अपने ही परिवार जनों की बहु से यह ही अपेक्षा ज्यादा होती है कि जन्म लेने वाला बच्चा बालक ही हो ऐसे में गर्भवती मां अपने परिवारिक दबाव तथा स्वयं की दुविधाओ की मानसिक यातनाओं के रूप से अपने को कमजोर समझने लगती है परिणाम स्वरूप वह अपनी माँ की स्व भावनाओ तथा संतान मोह को अपने दिल मे ही दबाकर मारकर मजबूर होकर गर्भपात जैसे अपराध को न चाहते हुए भी पारिवारिक दबाव के चलते पूर्ण कर लेती है किंतु ऐसा क्यों ?आज मैं उन सास-माताओं से कहना चाहती हूं कि क्या वह परिवार तथा समाज की सोच को पीछे छोड़ अपने बच्चे व परिवार की खुशी के लिए बहु को पारिवारिक समर्थन की ताकत बनकर साथ नहीं दे सकती यह भी प्रश्न आता है कि यह कैसे हो सकता है कि हम अपनों का विरोध करके ही अपनों के साथ कैसे रह सकते हैं यह समय है संयम तथा विवेक से काम लेने का आज की नारी की सुरक्षा के लिए नारी को ही आगे आने की आवश्यकता है मेरा ऐसा मानना है कि जब हम संकल्प लेते हैं किसी भी कार्य को करने का तो निश्चित रूप से उसकी एक रूपरेखा बनाकर उसमें सफलता प्राप्त कर ही लेते हैं समय है जागरूक होने का अपने अधिकारों का समझने का और उसको प्रयोग में लाने का हम समस्या के आगे झुकना नहीं चाहते समस्याओं का समाधान निकालना चाहते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या का आज भी हमारे देश में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का लिंगानुपात बहुत कम माना जाता है जबकि महिलाएं ही इस सृष्टि की आधारशिला मानी जाती हैं तो उसको समानता का अधिकार क्यों नहीं मिल पाता इसके पीछे कई कारण है उनमें से एक प्रमुख है जन्म पूर्व शिशु के लिंग की जांच व कन्या भ्रूण हत्या जैसे आपराधिक कृत्य
यदि हम प्रमुख कारणों की बात करें तो इसके इसके पीछे कई कारण है
1.कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य कारण सामाजिक विवाह समारोह की दहेज प्रथा है जो आज भी हमारे देश में शिक्षित प्रशिक्षित परिवारों में चलती रही है जिसके बोझ तले दबकर समाज का बहुत सा वर्ग कन्या को बोझ समझ कर उसकी हत्या माता के गर्भ में ही कर देता है।
2.दूसरा कारण हमारा समाज ये मानता है कि आज भी परिवार का अंश और वंश चलाने वाला बेटा बुढ़ापे में हमारा सहारा बनेगा
3.अपने ही परिवार की बेटी और बेटों में और समानता का भाव ना होना।
4.शिक्षा का अभाव होना और शिक्षित होते हुए भी अज्ञानता के चलते कन्या भ्रूण हत्या करना।
इस पर हम सबको मिलकर रोक लगाने के लिए हमें कई बड़े और अहम निर्णय उठाने होंगे !
1.हमें नियमित रूप से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठानी होगी
2.परिवार में लड़को को लड़कियों के प्रति सम्मान और आदर सिखाना होगा।
3.कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ सख्त से सख्त कानून बनाना अनिवार्य होगा।
4.दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा को समाप्त करना!

निष्कर्ष:-हलाँकि पहले के मुकाबले वक़्त काफी बदला है और सोच में भी परिवर्तन आ गया है। “बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियान कार्यरत हुए है। जो कि एक सकारात्मक सोच और भविष्य की और इशारा करता है। कई सामाजिक संस्थान लड़कियों को बचाने, पढ़ने और आत्मनिर्भर करने के सुझाव दे रही है और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की हर संभव कोशिश कर रही है।

जिन अस्पताल में डॉक्टर्स घिनोने अपराध कर रही है उनपर मुक़दमा चलाया जा रहा है और कड़े नियम लागु किये गए है। जो की फिर से एक सकारात्मक समाज के गठन करने की और इशारा कर रहा है, लड़कियों की पहचान सिर्फ चूल्हा-चौका करना नहीं है, बल्कि पड़ -लिखकर समाज को नयी दिशा की और ले जाने के साथ आत्मनिर्भर बनना भी है। लड़कियों को प्राथमिकता देना उतना ही जरुरी है जितना लड़को को। हम सबको मिलकर इस कन्या भ्रूण हत्याओं से समाज को छुटकारा दिलाना होगा।

सोच बदलने की जरुरत है, नयी सकारात्मक सोच से नवीन समाज का गठन कर हमारे भारत को आगे ले जाना है। समाज में कहीं भी इस तरह के अपराधों का पता चले तो तुरंत इसकी खबर पुलिस को देनी चाहिए ताकि वह उन अपराधियों को कठोर सजा दे सके। लड़के -लड़कियों में भेद- भाव न करे, इसे उन सारे परिवारों को समझना है, जो लड़को को ज़्यादा महत्व देते है और ज़्यादा काबिल मानते है। देखा जाए तो ऐसे कई क्षेत्र है जहाँ लड़कियों ने लड़को को पछाड़ा है।

डॉ.सारिका ठाकुर “जागृति”
लेखिका, कवियत्री शिक्षिका, समाजसेविका
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

 

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)