कविता

हिन्द के टुकड़े करने वालो ।

हिंद के टुकड़े करने वालो,
एक नज़र काबुल पर डालो।
भारत में यदि डर लगता है,
घर में सुंदर काण्ड करालो।

फिर भी अगर ना मन माने तो
अफगानिस्तान की टिकट कटा लो।
हिन्द के टुकड़े करने वालो
एक नज़र काबुल पर डालो।

प्याज, टमाटर महंगा लगता,
पाकिस्तान से भाव मिला लो।
मुफ्त में जान गवां बैठोगे,
मुफ्त की चाहत रखने वालो।

जनता को भड़काने वालो,
मुफ्त का माल लुटाने वालो।
हिन्द के टुकड़े करने वालो
एक नज़र काबुल पर डालो।

बचपन से बस ये ही सीखा,
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई।
ब्यर्थ लड़े सुखदेव भगतसिंह,
आजादी चरखे से आई।

सारा इतिहास बदलने वालो,
देश को गलत समझने वालो
हिन्द के टुकड़े करने वालो
एक नज़र काबुल पर डालो।

बेरोज़गारी बताने वाले
दिन भर गुटखे चबा रहे,
और पी रहे बीड़ी सिगरेट,
ठेकों पर लाइनें लगा रहे।

राजनीति फैलाने वालो,
भृष्टाचार बनाने वालो
हिन्द के टुकड़े करने वालो
एक नज़र काबुल पर डालो।

प्रदीप शर्मा

आगरा, उत्तर प्रदेश