कहानी

पश्चाताप के आंसू

सारिका का बचपन एक संयुक्त परिवार में बीता था । सारिका एक सरकारी स्कुल में अध्यापिका थी, उसने अपने बच्चे को बहुत ही प्यार से पाला, आज वह बड़ा हो गया था, अब वह बोलता था कि आपने मेरे लिए किया ही क्या है…. अपने बच्चे राहुल के यह वाक्य सारिका को झकझोर रहे थे उसके आंखों से आंसू निरंतर बहते जा रहे थे, आंखें लाल हो चुकी थी फूल कर बड़ी-बड़ी हो चुकी थी, यह वाक्य उसके सीने पर किसी भारी पत्थर की तरह दर्द दे रहे थे, अपनी यह बात किस से कहें…..
वह खुद एक स्कूल टीचर थी जो हजारों बच्चों की प्रेरणादायक थी , सभी बच्चे उसे प्यार और सम्मान की दृष्टि से देखते थे और उसका सम्मान भी करते थे, कुछ बच्चों की वह एक आइडियल टीचर थी, आज उसके अपने बेटे राहुल के द्वारा कहे वाक्य उसको सीने में एक नुकीली चाकू की तरह घाव दे रहे थे..।
आज उसे वह दिन याद आ रहा था ज़ब आनंद ने बच्चा ना होने पर उसे छोड़ दिया था, और उसने शादी ना कर के अनाथालय से एक बच्चा गोद लिया था, उसने उस बच्चे का पालन पोषण किया, जिसके लिए उसने ना दिन को दिन समझा,ना रात को रात, उसने वाह सब कुछ तो किया जो हर मां बाप करता है, उसने कभी राहुल को पिता के ना होने का एहसास भी नहीं कराया, राहुल को मां-बाप दोनों का प्यार दे करके आज 18 साल का नौजवान बना दिया था, आज राहुल एक प्राइवेट बैंक में काम करता था….। किस चीज की कमी रखी है उसने राहुल को पालने में, एक अच्छी जिंदगी थी उसने…..
एक कपड़े में स्कूल जाती थी और एक चप्पल चटकाये वो रास्ते पर पैदल चलती थी, चप्पलों के टूट जाने पर वह कैसे अपनी चप्पल को पिन से या रस्सी से बांध देती है, राहुल की कोई भी फरमाइश उनकी जुबान पर आने से पहले वह उसे से पूरा करती थी, अच्छे से अच्छा खाना थके होने के बावजूद बना कर खिलाती थी, उसने अपनी इच्छाओं का गला घोट कर अपने बेटे राहुल को पाला था, आनंद के छोड़ने के बाद उसने दूसरी शादी नहीं की वह सब के लिए एक मिसाल बनना चाहती थी, बस सेल्फ डिपेंड थी, उस सबसे बढ़कर वह एक टीचर थी..।
उसने अपने अगल-बगल और घरवालों से कितनी लड़ाई लड़ी थी, आज जो तू इस बच्चे को गोद ले रही है कल यही तुझे बताएगा, सारिका को अपने डिसीजन पर नाज था वह एक टीचर थी वह समाज को एक मैसेज देना चाहती थी अगर आपके बच्चे नहीं है तो आप अनाथालय से भी बच्चे ले लो लेकिन उसे क्या पता था,उसका यह फैसला उसके लिए सजा बन जाएगा..। सारिका ने अपना पूरा जीवन पर बच्चे के नाम कर दिया था…।
राहुल ने आज अपनी मां सारिका को कितना कुछ सुनाया, सारिका के मुंह से एक आवाज नहीं निकली, आज वह यह नहीं समझ पा रही थी, कि उसके द्वारा यह लिया गया फैसला सही था या उसकी परवरिश में ही कहीं कोई त्रुटि रह गई थी,राहुल जल्दी-जल्दी अपना बिस्तर बांध रहा था,वह सारिका को छोड़कर जा रहा था,और बोलता जा रहा था सबके मां-बाप सबके लिए कितना कुछ करते हैं तुमने मेरे लिए क्या किया, एक ना ढंग का मकान दिया और ना तुमने मुझे अच्छे कॉलेज में पढ़ाया, मेरे दोस्तों के पास बाइक है कार हैऔर वह सब विदेश में हैऔर मेरे पास एक मामूली सी नौकरी…….
सारिका मौन होकर सब सुन रही थी और उसकी आंखों से आंसू गिरते जा रहे थे, वह आज भी राहुल को उतना ही प्यार करते थी, कभी राहुल को एहसास नहीं होने दिया कि उसने राहुल को अनाथालय से गोद लिया है……।
राहुल अलमारी में से सारे कागज डाक्यूमेंट्स अपने रखकर वह घर छोड़कर जा रहा था, अचानक अलमारी में से एक फाइल गिरती है उसमें से कागज निकल निकल कर बिखर जाते हैं सारिका की नजर उस फाइल पर पड़ती है और वह चौक जाती है वह दौड़ कर उस फाइल को उठाने पहुंच जाती है….,पर राहुल उसको धक्का दे देता है आप मेरे कागजों को हाथ मत लगाइए, राहुल ज़ब पेपर समेत रहा होता है तभी उसकी नजर एक पेपर पर जाती है उस पर अनाथालय का नाम होता हैं यह राहुल के एडॉप्शन के पेपर थे, राहुल उस पेपर को पढ़ना शुरू करता है सारिका अपनी जगह जड़ हो जाती है जैसे लग रहा था आज मानो वह जमीन में गड़ गई हो, और अपनी जगह से हिलने की शक्ति खो बैठी हो, उसके शरीर का सारा खून सुख गया हो और अब उसमें हिलने की शक्ति ही ना बची हो…,
राहुल पेपर को पढ़ने के बाद अपनी मां के पैरों पर आकर गिर जाता है राहुल के आंसू बंद नहीं हो रहे थे ऐसा मानो प्रतीत हो रहा था कि पश्चाताप के आंसुओं से वह उनके चरणों को धो रहा हो , सारिका अचानक होश में आती है, वह अपने बेटे को उठाती है और उसको गले से लगा लेती हैं बेटा तेरे सिवा मेरा कोई नहीं है, तू ही मेरा बेटा हैं, राहुल के आंसू बंद होने का नाम नहीं ले रहे थे…। वो यह सोच रहा था, इतनी अच्छी जिंदगी मिली और मैं यह बोलता रहा तूने मेरे लिए क्या किया हैं अगर आज मां ने उसको अनाथालय से गोद ना लिया होता तो वह अनाथालय की गलियों में कहीं गुम होता,और यह जो जिंदगी मिली है वह भी ना होती…., वह बस रोए जा रहा था रोए जा रहा था और बस पश्चाताप किए जा रहा था कि उसने आज तक मां को कोई सुख दिया, आज तक उसने सिर्फ” माँ ” में कमियां ही कमियां निकाली, दूसरे के मां बाप अपने बच्चों को जो ऐशो आराम देते थे उनको देखकर वह मां को खूब सुनाता था..।
“सारिका भी राहुल को गले से लगा कर रोए जा रही थी…। राहुल को अपनी कही बातों पर पश्चाताप हो रहा था, और वह सारिका से माफी मांग रहा था, सारिका ने राहुल को माफ कर दिया। आज सारिका को अपना बेटा मिल गया था…।
राहुल ने उस दिन अपनी मां को सच्चा गुरु और सच्चा आइडियल माना।और उस दिन से उसने एक अच्छे बेटे का फर्ज निभाना शुरू किया, अब वह सारिका कि कहीं हर बात को मानता था और अब सारिका उसके लिए भगवान थी, माँ की कोई भी बात अपना टालता था..।
राहुल की शादी हो चुकी है राहुल जी अपनी मां की तरह अनाथालय से एक बच्चा गोद लिया।
टीचर्स डे उस माँ को नमन

…….. साधना सिंह स्वप्निल…..

साधना सिंह "स्वप्निल"

गोरखपुर में मेरा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है, मेरी शिक्षा लखनऊ यूनिवर्सिटी से हुई है, मैंने एम ए सोशल वर्क से किया है, कंप्यूटर से मैंने डिप्लोमा लिया है