कविता

देशद्रोही लाशें

नहीं सरकारें गलती नहीं करती
लोग ऐसे ही मर जाते है
और सरकार को कटघरे में खड़ा कर बदनाम कर जाते है
कोई भूख से मर जाता है
बेरोजगारी से परेशान कोई फंदे से लटक जाता है
कोई पुलिस की गोली से मरता है
तो किसी को नक्सली बता दाग दी जाती है सिर पर गोली
इन सारी मौतों के लिए हम-आप जिम्मेदार है
ये साजिश है अभावग्रस्त लोगो का
समानता के लिए संघर्ष करने वालो का
असमानता की खाई पाटने वालों का
निकम्मी और लंपट सरकार के खिलाफ
सरकारें हमेशा निष्कलंक और दोषमुक्त होती है
दोषी वो होते हैं
जो सरकार चुनते है
क्यों मांगते हो रोटी?
क्यों मांगते हो रोजगार?
क्यों मांगते हो शिक्षा?
क्यों मांगते हो चिकित्सा?
जब मांगना जुर्म है सरकारों से
तब क्यों मिलता लाशों को सम्मान के साथ अंतिम संस्कार का हक
बह रहे थे सो बहते रहे
पर सरकार को  क्यों बेनकाब करते रहे?
सरकार की अक्षमता की कहानी क्यों कहते रहे?
खुद मरे पर क्यों दिखा
गए हुकूमत का घिनौना चेहरा,
अब तो कायम होगा बहती लाशों के खिलाफ भी राष्ट्रद्रोह का मुकदमा,
जो खुद तो मर गए
पर सरकार को नंगा कर गए,
देशद्रोही लाशें।
— भाष्कर गुहा नियोगी

भाष्कर गुहा नियोगी

मैं भाष्कर वाराणसी से पत्रकारिता से जुड़ा हूं। कविताएं भी लिख लेता हूं मेरे आसपास की घटनाएं ही कविता बन जाती है।